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Showing posts from 2009

नव वर्ष २०१० में प्रवेश करे

बीता बरस गया बहुत कुछ बीत गया लम्हे सुनहरे लम्हे खीज भरे लम्हे तन्हाई के लम्हे दर्द रुसवाई के लम्हे प्रेम के लम्हे उम्मीद के लम्हे नाकामी के या लम्हे रहे हो किसी अपने की दी गयी चोट के हर ख्याल का, हर माहौल का इक इक लम्हा सबका बाँध पुलिंदा ले चला गया ये एक और साल हम सबकी जिन्दगी का और लाकर खड़ा कर दिया इक और नए बरस के द्वार पर जहाँ भविष्य के सपने बिखरे है हम सबके बस जोश और साहस से इस द्वार में प्रवेश करने की जरुरत है अतीत से सबक लेते हुए भविष्य की रौशनी से जीवन को उज्जवल करना है हर रंग जीवन का गहना होता है बस थोडा सा सब्र और निश्चयी तप करना है जिन्दगी अपनी मंजिल की ओर नित दिन बढती जाये ऐसा हर कर्म रोज़ करना है परिवार, समाज ओर देश सब हमारे सपनो को साकार होते हुए देखना चाह रहे है कोई कमी न रह जाये इसलिए जज्वा कम नहीं पड़ना चाहिए विजय गीत लिखे हम ऐसा जो पीढियों दर पीढियों आपकी पहचान को रखे जिन्दा आओ हाथ से हाथ अपना जोड़े और इसी संकल्प के साथ अपनी एकता का शंखनाद गुंजाते हुए हम सब एक डोर में पिरोई माला बनकर नव वर्ष २०१० में प्रवेश करे हे मेरे मालिक हमारे आग्रह आप स्वीकार करे............... न

इतनी भी क्या पीजिये...................

इतनी भी क्या पीजिये जो होश ही खुद का ना बचे बीवी बच्चो तक की कोई सुध बाकी ना रहे रात भर भटकते फिरते एक कदम आगे चार कदम पीछे दुसरो से पूछते दिखे खुद अपने ही घर का पता और जब हुई सुबह तो मिले किसी नाले या गटर में दिए हुए मुंह पड़े बेचारी बीवी और बच्चे दर दर खोजते खोजते शर्मिंदगी का दर्द लिए तुम्हारा अस्तित्व विहीन बोझ ढो ढो के जैसे तैसे घर के ठिकाने पर ले आने को मजबूर हो तो लानत है ऐसी जिन्दगी पे जो खुद की ही जिन्दगी पी पी के रोज गल सड़ रही है और अपने साथ ना जाने कितनी ही जिंदगियों को जो तुमसे अपनी जिन्दगी को सवारने की उम्मीद लगाये बैठे है उनको और उनको सपनो को तिल तिल पल पल मार रही है काश तुम समझ पाते कभी उनके सपनो का अर्थ जो तुम्हारे अपने है और तुमसे ही उनके सपने सपने है काश !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!............................... रवि कवि

मन चिंतन के लिए बना है

मन का बहाव बहुत तेज गति से ऐसे बहाता ले जाता है जैसे सागर में उठे ज्वार से लहरों के चक्र वात में सब उथल पुथल हो जाता है मन जो कहीं टिकता नहीं मन जो किसी का हुआ नहीं मन जो हर बंधन से सर्वदा आजाद रहता है मन जिसे काबू में करने को सारा जीवन लग जाता है पर हाथ कुछ नहीं आता मन जो न हारता है मन जो न जीतता है मन जो राजा है खुद अपने आप का उसका शारीर से कोई मोह नहीं वो जो हर दुःख हर सुख, हर आवाजाही से परे रहता है नियंत्रण जिसे कदापि मंजूर नहीं दौड़ते रहना जिसकी आदत है उलझन सुलझन जो उसके खिलोने भर है वोह जो कोई दस्तूर नहीं मानता वो जो किसी परंपरा किसी समाज की हद सबसे जुदा रहता है मन की गुलामी करवाना जिसे सर्वदा भाता है हम उसी मन को काबू करने की सोच में जो न जाने क्या क्या करते है पर जरा सोचा कभी की फिर भी ये मुमकिन नहीं हुआ आज तक क्योंकि मन नियंत्रण के लिए नहीं मन चिंतन के लिए बना है और ये सिर्फ उनका ही हुआ है जिनका जीवन चिंतन का गोता लगाने की कला को सीख लिया है ............................ रवि कवि

शीर्षक : जिन्दगी का रंग ही बदल जायेगा

शीर्षक : जिन्दगी का रंग ही बदल जायेगा है बहुत कुछ अभी जो करना बाकि है मुश्किलों के दौर से क्या डरना येही तो जिन्दगी के असली साथी है मंजिलों की तरफ जाना हर कोई चाहता है लेकिन सबके अपने रास्ते और राहे हुआ करती है वक़्त हर सवाल का जवाब होता है इसलिए सब्र रखने मं ही भला होता है हर लम्हा बेशक हमारा न हो पर कोई पल वो जो अपना होगा वो भी जरुर एक दिन आएगा सब्र से जियो और इम्तिहान देते रहो हर दुःख दवा बन जायेगा यूँ भी बदलने के लिए माहौल होता है रिश्ते नहीं जिन्दगी का रंग ही बदल जायेगा जो गर इतना मर्म ही हर कोई समझ जायेगा ........... रवि कवि

नारी आज बन पड़ी है क्रांति

देखो हमारे हौंसले की बानगी नारी आज बन पड़ी है क्रांति अपने हक और स्वाभिमान की अब है उसने ठान ली हर कदम आगे बढेगा शान से जीत जायेंगे इस जहाँ से हर जिम्मेवारी करेंगे पूरी अपनी पूरी जान से नहीं हटेंगे हम पीछे आगे किसी भी तूफ़ान के पहुंचेंगे हम हर उस मुकाम पे जो चमकेगा एक दिन हमारे काम से.....................रवि कवि

एक प्रयास तो करो

वो करते है तुम सहते हो वो अड़ते है तुम डरते हो वो कहते है तुम करते हो क्या येही जीने का मकसद तुम्हारा है जुबान रहते हुए भी बे जुबान जिया जाता है तो लानत है तुम पर तुम्हारी सोच पर करनी पर जीने के अदाज़ पर जो लाचारी को जीने की मजबूरी बना रखा है किस्मत खराब है नाम का चोगा पहन रखा है क्यों समझ नहीं आता इन दो हाथों का वजूद जिनसे अगर मेहनत की जाये तो गंगा भी स्वर्ग से धरती पर लायी जा सकती है खोद के पहाड़ सुरंग बनाईं जा सकती है हर नामुमकिन चीज़ इन हाथो से और बुद्धि के सहारे संभव बन जाती है क्या ऐसा है जो मुमकिन न हुआ हो जब इरादों में ही बल न हो तो सिर्फ कोसा ही जाया जा सकता है हालत को, किस्मत को, भगवान को माँ बाप को, परिवार को, समाज को जोकि सबसे आसान काम है करना पर क्यों कभी नहीं उठ पाती खुद की ऊँगली अपनी ही ओर जो कर सके तुमसे सवाल ओर पूछ सके क्यों अब तक बेमानी जिन्दगी जी है जिस जिन्दगी का कही कोई अर्थ नहीं कोई अस्तित्व नहीं दूसरो की सफलताओं पर ही अब तक ताली बजाते रहने वालो क्या कमी थी ऐसी खुद में जो मुकाम नहीं मिला जिन्दगी भर जिया पर नाम - कुछ न किया अफ़सोस अगर अब भी नहीं बदले तुम नहीं संभले

मत ओढो खामोशी को

मत ओढो खामोशी को डर कर जीने से क्या होगा जो अब तक कुछ लुटा है तो कल तक सब कुछ लुट जायेगा ऐसे ही चुपचाप सहे तो सर्वस्य बिक जायेगा देश की माटी लहुलुहान और सपने आंसू बन जायेंगे चीख दफ़न गर हो जाये तो ना इंसाफी सर उठाती है जिन्दगी सडी गली लाश बन जाती है क्या ये ही जीने का मकसद हमारा है जहा हमारा कुछ भी न हो सब पर हक पापी पाखान्द्दियों का हो ये कब तक और चलता रहेगा मजदूर मजलूम सिर्फ रोये और हक छिनने वाला ऐश करे ये जबरनी कानून कब तक हमको डसेगा गरीब के बच्चे भूख से बिलखे बासी खाना या कुछ भी न मिलना तन ढकने को कपड़ो को तरसे घर के नाम पर टपकती झोपडी गर्मी सर्दी हर मौसम जहा अँधेरा हो ऐसे जीवन को जीना अब सेहन मत करो नहीं - नहीं अब और सहना नहीं डरों मत उठो आगे बढो हिम्मत से जुटों और बदल डालो इस तंत्र को जहा गरीबो की मेहनत पर अमीर मजे उडाते हो और उनके हक मार मार कर अपने महल बनाते हो मत घबराओ देख कर उनकी ताकत को मत भूलो सच्चाई की अपनी भी ताकत को चले चले सब मिलके अब अधिकार अपने पाने को और दिखा दे की गरीब होना महज़ संयोग है कोई पाप या गुनाह नहीं और कोई गरीबी पर राज़ करे और, ये अब हमे कतई मंजूर नहीं..

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इतना ही है पता

जिन्दगी में तुझे समझाता रहा जलता रहा, सुलग सुलग जीता रहा सदा कितनी है तुझ में बाजीगरी देखता रहा जीने की कोशिश जी जी के करता रहा ना कभी पाया तुझे ना कभी जाना बस आरजू लिए जीने की जिन्दगी जिया बड़ी ही खामोश है तेरी हर अदा जीते है जिन्दगी सब तेरे नाम के सिवा कुछ और नहीं पता ढूढ़ता हर कोई पर पता कभी नहीं ऐ जिन्दगी तुझे क्या हम कहे अभी जीना है बस तेरे सहारे सदा इतना ही है पता.......... रवि कवि

चले तो बहुत

चले तो बहुत, पहुंचे कही नहीं, किया बहुत, पाया कुछ नहीं, जिन्दगी झोख कर भी पूरी, सुख चैन कभी मिला नहीं, अब संभल जाने का वक़्त है, जिन्दगी फिर नहीं मिलेगी, कुछ कर गुजरने की ठान अब, काम ऐसा कर, की जीवन हो सफल मेरा.... रवि कवि"

शिक्षित तो हुए

शिक्षित तो हुए, पर खुद को कभी बदल न पाए, सिर्फ दुसरो को गलत साबित करने, नीचा दिखाने, कमजोर बताने, में ही लगे रहे बड़प्पन कभी दिखा न पाए, शिक्षा तो पा ली, लेकिन जीवन में इसे उतार न पाए, खुद की ताकत के अंहकार के आगे, इस अनमोल जीवन का मर्म, कभी समझ ना पाए .......रवि कवि -

इतनी ऊँची उड़ान

किस चीज़ का गुरुर है तुझको क्या ऐसा है तेरे पास जिसके आगे तुने किसी को कभी कुछ न समझा तू ज्ञानी है, बड़ा पैसे वाला है बहुत बड़ा कारोबारी है या कोई बड़ा अफसर या नेता , अभिनेता है तेरे सामने - बड़े नौकर चाकर, कर्मचारिओं की लम्बी कतार है गाडियाँ है, बंगले है, मोटा बैंक बैलेंस है हीरे जवाहरात है पॉवर भी है और शोहरत भी वोह सा कुछ है तेरे पास जिसके आने के बाद अक्सर आदमी खुद पर काबू कम ही रख पाता है बहुत विरला ही कोई इंसान, इंसान रह पाता है वर्ना बदल जाता है इंसान भी और नजरिया भी खुदके आगे खुद के अंहकार के आगे सब दिखना बंद हो जाता है वो सिर्फ वो रह जाता है जिसको वो यानि परमात्मा कभी नहीं मिल पाता है इसलिए नहीं की उसने ये सब पा लिया है बल्कि इसलिए की सब कुछ पाकर वो इतना खोकला हो जाता है जिसमे इंसानियत और समानता सब बेमानी हो जाती है घमंड और बेईमानी लालच और दूसरो के हक तक लीलने में उसको कोई परेशानी नहीं होती है इसलिए सब कुछ होते हुए भी ऐसा शख्स उस परिंदे जैसा होता है जिसके पर उसे इतनी ऊँची उड़ान पर ले जाते है जहाँ से नीचे हर चीज़ बहुत छोटी नज़र आती है पर ऐसा नहीं की हर परिंदा जो ऊंचाई पर जाता हो

बस कर्म किये जा

बदलाव आएगा, जरुर आएगा, तू बस खुद पर और खुदा पर यकीं रख, ईमानदारी से तप कर, फिर देख दुनिया को मानते हुए लोहा तेरी कर्म तपस्या का तेरा भाग्य तेरा कर्म होगा न की दूसरो का फैसला, बस कर्म किये जा और जिए जा ..........रवि कवि

जीवन का सुख

घाव बड़ा था इसलिए जख्म हरा ही है अभी दर्द और टीस रहेगी बरक़रार यूँ ही कुछ और दिन अभी वक़्त खुद इलाज़ होता है इसलिए सब्र रखना पड़ता है गूंगे बहरे लोगो के आगे रोने से कभी कुछ नहीं मिलता है कितना भी बड़ा हो दर्द लेकिन चुपचाप सहना ही ठीक रहता है चीख भले ही दिल से निकले पर बाहर तक न आ पाए येही यतन मन को करना है समझेगा भला कोई क्या किसीको सब के सब ऐसे ही जीवन के आदी है वक़्त नहीं फुर्सत नहीं न ही पल दो पल का सुकून है सब दौड़ रहे इस जीवन में इतना ही मंतव्य है अपने दर्द से ज्यादा पीडा सामने वाले के दामन में है इसलिए खामोश सहो सब इसमें ही जीवन का सुख है............. रवि कवि

जीवन का सुख

घाव बड़ा था इसलिए जख्म हरा ही है अभी दर्द और टीस रहेगी बरक़रार यूँ ही कुछ और दिन अभी वक़्त खुद इलाज़ होता है इसलिए सब्र रखना पड़ता है गूंगे बहरे लोगो के आगे रोने से कभी कुछ नहीं मिलता है कितना भी बड़ा हो दर्द लेकिन चुपचाप सहना ही ठीक रहता है चीख भले ही दिल से निकले पर बाहर तक न आ पाए येही यतन मन को करना है समझेगा भला कोई क्या किसीको सब के सब ऐसे ही जीवन के आदी है वक़्त नहीं फुर्सत नहीं न ही पल दो पल का सुकून है सब दौड़ रहे इस जीवन में इतना ही मंतव्य है अपने दर्द से ज्यादा पीडा सामने वाले के दामन में है इसलिए खामोश सहो सब इसमें ही जीवन का सुख है............. रवि कवि

हार जीत में केवल वक़्त का फर्क होता है

हार जीत में केवल वक़्त का फर्क होता है प्यादे से पिट जाये वजीर कभी कभी ऐसा भी होता है बहुत नामुमकिन अक्सर मुमकिन और बहुत मुमकिन अक्सर नामुमकिन होते भी बहुत देखा है जिन्दगी एक सांप सीढ़ी के खेल से ज्यादा और क्या होगी? कभी जीती हुई बाज़ी कब पल में हाथ से निकल जाये कोई बड़ी बात नहीं होती सपने कब बनते बनते टूट कर बिखर जाये ये होना भी बड़ा आम मिलता है अपने, अपने सिर्फ दीखते है पर होते नहीं कब दगा दे जाये ये अपने चेहरे इसके लिए भी मन हमेशा तैयार रखना पड़ता है लोगो की भीड़ में दुश्मन जैसा कोई न मिले , दिखे दरअसल जो दोस्त होता है उसी चेहरे के पीछे ये दुश्मन शख्स छिपा रहता है लाख कर लो कोशिश इमानदार अच्छा इंसान बनकर जीने की पर स्वार्थ ही जीत जाता है हर बार हर लड़ाई में दब कर रह जाती है अक्सर सच्चाई झूट की चीख में हर नारा जो बुलंद होता है कागजो, दीवारों, किताबो और सभाओ में कही नहीं दीखता उसका रंग जिन्दगी की राहो में बस मुखोटे लिए जीना मानो आज के आदमी की जरुरत बन गयी है हर आदमी से काम निकाल कर भूल जाना फितरत बन गयी है शायद ये पैसे की होड़ है जिसके आगे हर सम्बन्ध हर सच्चाई बेबस है मजबूर है लाचार है

शिक्षा हो भय से परे......................

शिक्षा हो भय से परे बच्चे खुद अपना भविष्य तय करें सही मार्गदर्शन उन्हें मिले शहर हो या फिर गाँव भेदभाव कही न रहे सबको बराबर मौके और प्रेरणा मिले हर स्कूल प्रगति का मार्ग बने न की डर की वह दूकान चले घर में प्रेम का माहौल बने बच्चों को उनके मुताविक सम्मान मिले हर बच्चें में कुछ अलग होता है इसलिए हर बच्चे की जरुरत को आंकना सबका कर्त्तव्य बनता है बच्चें देश की पहचान होते है आने वाले कल का निर्माण होते है बच्चें कही भी हों किसी कभी हों किसी भी हाल में जीते हो वो हमारी अमोल धरोहर होते है इसलिए उनको सहेजकर रखना हम सबका कर्त्तव्य है बच्चों को डर की नहीं हमारे सिर्फ प्यार की जरुरत है इनका बचपन संवरे इनमे ही हमारा कल जीवित है .............. रवि कवि

शिक्षा हो भय से परे......................

शिक्षा हो भय से परे बच्चे खुद अपना भविष्य तय करें सही मार्गदर्शन उन्हें मिले शहर हो या फिर गाँव भेदभाव कही न रहे सबको बराबर मौके और प्रेरणा मिले हर स्कूल प्रगति का मार्ग बने न की डर की वह दूकान चले घर में प्रेम का माहौल बने बच्चों को उनके मुताविक सम्मान मिले हर बच्चें में कुछ अलग होता है इसलिए हर बच्चे की जरुरत को आंकना सबका कर्त्तव्य बनता है बच्चें देश की पहचान होते है आने वाले कल का निर्माण होते है बच्चें कही भी हों किसी कभी हों किसी भी हाल में जीते हो वो हमारी अमोल धरोहर होते है इसलिए उनको सहेजकर रखना हम सबका कर्त्तव्य है बच्चों को डर की नहीं हमारे सिर्फ प्यार की जरुरत है इनका बचपन संवरे इनमे ही हमारा कल जीवित है .............. रवि कवि

ये भी कोई मैंने जिन्दगी जी................

मैंने जीवन ऐसे बिताया जैसे कोई जानवर चारपाया हर चीज़ की मुझे जिद रही ऐसी जैसे सब कुछ मेरे लिए ही बना हो मैंने कभी किसी की बात न मानी क्योंकि मुझे आदत थी सिर्फ अपनी तरह जीने की जिस तरफ दिल ने चाहा उस और ही चल भागा न दिन की सोची न रात की न घर की सोची न घरवालों की न अच्छे की सोची न बुरे की बस करता चला गया बढ़ता चला गया यूँ तो अकेला ही चला था मगर कुछ बिन चाहे दोस्तों की कतार में शामिल हो गया कब हुआ कैसे हुआ ये तो याद नहीं पर इन अजनबी रिश्तों के आने से मेरे अपने सभी अपने रिश्ते जरुर छूटते चले गए और जिनकी मैंने परवाह भी कभी की हो ऐसा भी कुछ हुआ नहीं लगता था जैसे की मेरी जिन्दगी बदल गयी सिगरेट, तम्बाकू, शराब सब मेरी मानो जिन्दगी बन गयीं लत कब आदत बनी आदत कब लाचारी हुई लाचारी कब बेचारगी लगने लगी बेचारगी कब जिन्दगी लील गयी होश में रहता कभी तो मालूम भी होता लाख समझाना मुझे मेरे अपनों का बार बार इलाज़ करवाना मेर रोगों का घर से ज्यादा अस्पताल में रहना इन सबके बाबजूद मुझे रत्ती भर अहसास न होना की मैं क्या खो रहा हूँ इस अनमोल जीवन में सब मेरा लुट गया उस नशे की काल कोठरी में जो मुझे सबसे प्रिये रही स

बेटे का दिया कम्बल.......................

एकांत घर के किसी कोने में खाली लिफाफे सा, कूडे सा बिखरा हर आहट पर पथराई आँखों से टूटती उम्मीद लिए सहारे के लिए लाठी ढूंढ़ता और फिर लडखडाते क़दमों से उठने की कोशिश करता ये शख्स हर रोज़ यूहीं नजर आता है मोहल्ले के पुराने लोग कहते है कि कभी बड़े सरकारी अफसर हुआ करते थे बड़ा रौब था, खुद इज्ज़त थी पैसा भी बेहिसाब कमाया अपने बच्चों को खुद अच्छा पढाया लेकिन ये सब बातें सुनकर कुछ यकीं सा नहीं होता कि ये वोही शख्स हो सकता है चेहरे पर अनगिनत झुर्रिया एकदम शिथिल जर्जर शरीर कमजोर आँखे लडखडाती जुबान हर किसी से सहारे की आस लिए उम्र शायद 65 से ज्यादा नहीं लगती पर इतना बेबस इतना मजबूर आश्चर्य है - कितना बेचारा है लेकिन ये कहानी केवल उस शख्स भर की नहीं बल्कि आज लगभग हर बुजुर्ग की होती जा रही है जो अपने ही घर में पराया है अपने बच्चे भी जिसे एक नजर उठा कर नहीं देखते जो खुद का इलाज़ - खुद ही करता रहता है और मौत से पहले - बार बार जीता मरता है ये आज के वर्तमान युग की बेहद कड़वी सच्चाई है जहाँ अब बूढे असहाए माँ बाप औलाद के होते हुए भी पल पल तिल तिल घुट घुट कर जीते है झूटी उम्मीद में बुढापा काटते है घर होते

पैसे की नींव पर - इलेक्ट्रोनिक मीडिया

देख झगड़ते दो बन्दर बिल्ली ने तिकड़म लगाईं बना के खुद को ही जज खा गयी सबकी मलाई ये घटना कोई किस्सा नहीं है है एकदम सच्ची बात बिल्ली से ही प्रेरणा पाके आज की इलेक्ट्रोनिक मीडिया (व्यापार) अस्तित्व में आई है नाम खबर है पर भर भरके मसाला बाँट रहे है यह सब जग को चिंगारी को आग बना के डरा रहे है यह सबको मामूली से मामूली घटना होती है बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ खुद को बनाके उपदेशी देखते है सबमे खोट बाल की खाल निकाल कर कर देते है सबको गंजा - नंगा टी आर पी बढाने के चक्कर में खुद ही रचते है शिकंजा ( स्टिंग ऑपरेशन) १०० में से ९० कार्यक्रम प्रायोजित ये है इनका धंधा पंडितो पाखंडियो को रात दिन गाली बकना फिर सुबह सुबह तंत्र मंत्र , राशिफल, वास्तु न जाने क्या क्या फैला रखा है फालतू का गोरख धंधा लाइव कवरेज़ इनका प्रिये शौक है कोई आग लगाये खुद को, या आतंकी हमला करे बढा चढा कर पेश ये हर खबर करे सबसे पहले खबर दिखाने की हौड सी रहती है इनमे बिना सोचे समझे, परखे बस परोस देते है खुद ही ये जज है और खुद ही ये कानून है मीडिया ट्रायल करना आजकल बड़ा आम है सच सामने आने से पहले ही गुनहगार शरीफ और शरीफ को गुनाहगार बना देते ह

पैसे की नींव पर इलेक्ट्रोनिक मीडिया.........................

देख झगड़ते दो बन्दर बिल्ली ने तिकड़म लगाईं बना के खुद को ही जज खा गयी सबकी मलाई ये घटना कोई किस्सा नहीं है है एकदम सच्ची बात बिल्ली से ही प्रेरणा पाके आज की इलेक्ट्रोनिक मीडिया (व्यापार) अस्तित्व में आई है नाम खबर है पर भर भरके मसाला बाँट रहे है यह सब जग को चिंगारी को आग बना के डरा रहे है यह सबको मामूली से मामूली घटना होती है बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ खुद को बनाके उपदेशी देखते है सबमे खोट बाल की खाल निकाल कर कर देते है सबको गंजा - नंगा टी आर पी बढाने के चक्कर में खुद ही रचते है शिकंजा ( स्टिंग ऑपरेशन) १०० में से ९० कार्यक्रम प्रायोजित ये है इनका धंधा पंडितो पाखंडियो को रात दिन गाली बकना फिर सुबह सुबह तंत्र मंत्र , राशिफल, वास्तु न जाने क्या क्या फैला रखा है फालतू का गोरख धंधा लाइव कवरेज़ इनका प्रिये शौक है कोई आग लगाये खुद को, या आतंकी हमला करे बढा चढा कर पेश ये हर खबर करे सबसे पहले खबर दिखाने की हौड सी रहती है इनमे बिना सोचे समझे, परखे बस परोस देते है खुद ही ये जज है और खुद ही ये कानून है मीडिया ट्रायल करना आजकल बड़ा आम है सच सामने आने से पहले ही गुनहगार शरीफ और शरीफ को गुनाहगार बना देते

रोज़गार की आस

एक गई, दो गई, तीन गई अब तो पुरे दर्ज़न गई बड़ा की कच्चा शिकारी निकला और हर बार खुद ही शिकार बन बैठा मैं किसी ने चमक में फीका बताया तो कोई मुझमे कुछ खास न पाया कोई मुझे लायक ही न समझा और कोई मेरा मोल कौडी बताया पर हर बार बार बार मेरा सपना चूर चूर भरपूर किया मुझे सपने देखने का कोई हक नहीं है इस बात का अहसास बार बार कराया मेरी उमीदों को टूटना हर बार पड़ा में बिखरता रहा, कुम्ह्लता रहा तमाशा बनता रहा लोग बुलाते रहे, लोग नकारते रहे मेरे सपनो की दुनिया उजाड़ते रहे और रोज़गार की आस में बैठा ही रह गया सुखी नजरो से आसमान की और देखते हुए हवाओ के झोखो में उलझे हुए काश ये मेरी किसी रात का कोई बुरा स्वप्न हो जब सुबह हो तो दफ्तर भागने की दौड़ लगी हो ......................... रवि कवि

दुनिया बहुत बदल गयी है........................

वो कोई और लोग होते है जिनकी किस्मत के सितारे बुलंद होते है हम जैसे लोगो के हाथ की लकीरों में सिवाए हाथ मलने के कुछ और नहीं होता या यूँ कहे की किस्मत जैसी कोई चीज़ नसीब में होती ही नहीं सिर्फ खोखली उम्मीद और असफल इन्तेज़ार ही जिन्दगी होती है हर दाँव में हार लिखी रहती है कुछ भी हो जाये धरती बेशक उलट पलट जाये लेकिन जिल्लत की कमाई मिलना तय रहता है दुनिया बहुत बदल गयी है पर कुछ लोग नहीं बदल पाते और आज भी सच्चाई और ईमानदारी की बेतुकी बातें जिन्दगी में सजा कर रखते है जो हकीकत में आज के युग में कबकी दफ़न हो चुकी है वज़न व्यक्तित्व का नहीं नोट का होता है तराजू के किसी भी पलडे में बैठा लीजिये सच्चाई, ईमानदारी को मामूली भी मोलभाव हो सके इतना भी वज़न नहीं होता है ............... रवि कवि

जग ने मुझे बनाया वेश्या....................

जग ने मुझे बनाया वेश्या नोंच नोंच कर खाया है बेच शारीर मैंने अपना घर परिवार चलाया है मेरा जुर्म था बस इतना थी गरीब की मैं इक बेटी पढना लिखना था मुझको जब नहीं मिला कोई भी सुख न रोटी थी न छप्पर था दीन हीन घर का मंजर था पहले धोखे से लुटा तन फिर मजबूरी में बिकने लगा लगा दिया फिर वो तमगा जो जीते जी की मौत था और मैं हालत की मारी बेबस बन गयी इक वेश्या रोज़ ग्राहक आते जाते मेरा तन बना दिया इक बिस्तर क्या जुर्म येही था कि हुई में पैदा इक गरीब के घर सारे सपने लूट के मेरे समाज की सबसे बेहया नारी का ठप्पा लगा दिया यूँ तो सभ्य समाज है दुनिया सारी सारे ही लोग बहुत भले है फिर काहे को मजबूरों का शोषण सब मिल जुलकर करते है शास्त्र बताते है देवता भी नारी का सम्मान करते थे पर आज कि इस दुनिया में देख गरीब की बेबस बेटी कोई मौका पाते ही कलंकित कर देते है क्यों सिर्फ खुद की माँ, बहिन और बेटी ही अपनी दिखती है माँ बहिन बेटी किसी की भी क्यों न हो पर जब उसकी आबरू लुटती है सारी कायनात समझो फिर राक्छासों की बस्ती है जिस समाज में नारी को बेचना अपना शरीर पड़े जो जननी को बिस्तर समझे ऐसे समाज का कोई अस्तित्व नहीं पर ये

होके जुदा मैं............

तुम किसे ये कह रहे हो कि चले जाओ तुम मेरी जिन्दगी से सांस भी मैं हूँ, धड्कड़ं भी मैं ही हु तेरी जुदा होके मैं तुझसे कैसे रहूँ ........... रवि कवि

सौदा मुझे जचता नहीं

जीतकर हारना, हारकर जीतना मेरी आदत नहीं, मेरी आदत नहीं मैं भले ही रहूँ, या न रहूँ पर ये सौदा मुझे जचता नहीं ................... रवि कवि

पायेगी क्या ............

तू जिन्दगी मुझे, भला हरा के पायेगी क्या तू जीत कर भी, जीत पायेगी क्या ............. रवि कवि

कौन देता है .........

कौन देता है जिन्दों को दवा कौन करता है जीते जी की दुआ कोई रहता नहीं साथ सदा जीत के भी होते है इम्तिहान सदा हर कोई दौड़ता भागता है यहाँ दो पल ठहरने का सुकून भी भला कहाँ एक दुसरे को गिरा - उठा बस येही खेल है चलता हुआ उम्र बीत जाती है सिर्फ कशमकश लिए और जिन्दगी ख़त्म भी हो जाती है एक दिन सपनो को यूँही छोड़कर संजोया हुआ....................... रवि कवि

प्रेम होता है ...........

प्रेम होता है तो होने दो जुनुने इश्क चढ़ने दो मैं, मैं रहना ही नहीं चाहता मुझे इन मदभरी आँखों में डूबा रहने दो मुझे मोहब्बत हो गयी है ये बात जग को पता चलने दो यूँ भी अब सब मिल गया है मुझे इसलिए मेरे नाम को फूलों की तरह बिखर जाने दो अब नाम दो या बदनामी मुझे जो मेरा रब राजी तो सब राजी .............. रवि कवि

हदें ..............

देखना है तो देखिये बेशर्मी के हदें नामे मोहबत हुई खामख्वा शरीरे बैचैनी बढ़ रही है बे - परवाह ( प्रयोजन :- सार्वजानिक स्थल पर अश्लील हरकत करने वालो के नाम) रवि कवि

हदें ..............

देखना है तो देखिये बेशर्मी के हदें नामे मोहबत हुई खामख्वा शरीरे बैचैनी बढ़ रही है बे - परवाह ( प्रयोजन :- सार्वजानिक स्थल पर अश्लील हरकत करने वालो के नाम) रवि कवि

येही जीवन की भक्ति है.......................

किससे लडू, किससे शिकायत करूँ सब तो अपने है हर किसी से कुछ न कुछ हमारे रिश्ते है कोई खून का सम्बन्धी है, कोई दोस्त, कोई पडोसी, कोई कुछ पल का हमराही सब हमसे जुड़े हुए लोग ही तो है शायद उसकी कोई मज़बूरी ही रही होगी जो वो गिरगिट की तरह बदल गया कुछ फायेदे के लिए रिश्तों को कुतर गया तो क्या हो गया ? उसको ख़ुशी मिली, तरक्की मिली चलो किसी का फायेदा हुआ बेशक वो में नहीं था मगर जिसे भी हुआ वो मेरा अपना था और इतना ही काफी है ख़ुशी मनाने के लिए वैसे भी इस दौड़ती भागती जिन्दगी में किसी के पास फुर्सत के पल ही कहाँ होते है बाजारी युग है, तो जो भी पल है सब पहले से ही पैसे के लिए बिके होते है सोचने समझने और रिश्तों को निभाने की बेबकूफी ऐसे में भला कौन करना चाहेगा जो जरा सा कुछ बन जाता है ताकत पा लेता है समझो खुदा ही बन जाता है देता भी नहीं और भिखारी भी बना देता है सुना था वक़्त भागता है तेजी से पर इस युग का आदमी वक़्त से कही ज्यादा तेजी से भागता दिखाई पड़ता है हीरे की पहचान कोयला करता है झूट प्रपंच और राजनीती सब सफलता के मार्ग बन चुके है ईमानदारी परिश्रमी और सच्चा होना नरक के रास्ते है ये खेल खूब चल रहा

प्रेम कि अद्दभुत लीला ................

प्रेम कि अद्दभुत लीला देखो कोई करता है कोई डरता है प्रेम कि अजब तस्वीर देखो कोई दीखता है कोई छिपता है प्रेम का निर्गुण रूप देखो कोई लड़ता है कोई सहता है प्रेमियिओं कि प्रेम भक्ति देखो कोई छलता है कोई अपनाता है करते है बड़े बड़े तप प्रेमी कोई रिझता है कोई रिझाता है ये प्रेम बड़े बड़े खेल खेले लुक छिप दुनिया से करवाता है ना सोचता है न सुनता है दिल ही दिल में रहता है बन प्रेम नगर का राजा ये खोजे प्रेम नगर कि रानी को खाए कसमे सभी तोडे रस्मे सभी कोई नियम कायदा यहाँ नहीं चलता है बस प्रेम करो चाहे जैसे भी करो चाहे खुल के करो चाहे छिप के करो कभी खाओ धोखा, कभी दो धोखा बड़ा अजब ये प्रेम का फ़साना है पर जो भी हो ये प्रेम एक नायाब कारनामा है जिसे करने को हर दिल चाहता करना चाहता है .............. रवि कवि

मेरा रब अब तू ही.........

तेरे काँधे पे सर रख कर मुझे लगता है कुछ ऐसे कि जीवन हो जाये पूरा इसी अंदाज़ में जीते ना मेरा है कोई अपना ना मेरा है कोई सपना में बैठी बस रहू हर पल तेरे ही आगोश में ऐसे ना दुनिया कि जरुरत है ना मुझको कोई डर है मेरे महबूब कि बांहों का घर ही अब मेरी जन्नत है मेरा नसीब भी तू है मेरा संसार भी तू है मेरे सुख दुःख कि दुनिया का तुही हमराह अब इक है साँसों को नहीं परवाह मेरे दिल के धड़कने कि मेरे जब साथ तू है तो तू ही धड़कन है अब मेरी उमरियाँ बीत जाये बस तेरे साए में यूँ ही अब में मांगू और क्या रब से मेरा अब रब भी है तू ही ............. रवि कवि

आपको देखा है ................

जो हमने पूछा अपने आप से कि ख्वाब किसे कहते है तो जवाब ये आया अन्दर से जो सच ना हो उसे कहते है अगर वाकई ऐसा होता है तो हमने भी ये मान लिया है कि हमने आपको नहीं बल्कि किसी ख्वाब को देखा है ......... रवि कवि

व्यथित हूँ में !!!!!!!!!

कुंठित हूँ में व्यथित हूँ में एक आग सी जल रही है सीने में चारो तरफ एक सा नजारा है जो बाहर है वही भीतर है दीखता नहीं कोई सहारा है आँखें है मगर अन्धकार बहुत घना है भ्रमित, चकित, अविश्वसनीय समां है खोजती आस हर कोई नज़र है सब एक जैसे ही है लाचार भाई सारे है जिसे देखो वो ही हमसे बड़ा है अपने दर्द के घेरे में मुस्कान बरबस नहीं जबरन आती है पीडा छिप भी कहा पाती है उपाए कोई सूझता ही नहीं आवाज़ सुनने वाला कोई भी दीखता नहीं खुद का साया भी साथ साथ चलते चलते थक सा गया लगने लगा है मानों बेबस तरसती लडखडाती जिन्दगी मेरी तरह सबकी लगती है कैसे मान लू की ये जिन्दगी है सच तो ये है कि जीना महज एक किस्म कि मजबूरी है जो कि हम सबकी एक सी है .......................... रवि कवि

भाषा ही बदल दी ...............

अपने ही देश में अनाथ सी रहती है असहाए लाचार अपनों की दुत्कार से छिन्न भिन्न सी अवसाद ग्रसित सी एक ठोर खोजती है देश को पहचान दी थी कभी आवाज़ बनकर राह दिखलाई थी जिसने कभी आज़ादी की ढाल होती थी कभी अब उसे पूछने वाला कोई नहीं बस पुरे साल में उसका एक १५ दिवसीय पखवाडा मना कर याद कर लिया जाता है जिस भांति बुजुर्गो का श्राद्ध कर्म किया जाता है कितनी अफ़सोस की बात है कि जिसको हमने अपनी मात्र भाषा बनाया आज उसी देश में उस भाषा पर बस कुछ चन्द सरकारी मौको पर सहानुभूति की चादर सम्मान सहित चढा दी जाती नौकरी नहीं मिलती एकदम नाकाबिल करार दिए जाते है अब हिंदी में काम करने या बात करने वाले सिर्फ और सिर्फ ठोकर धक्के और अपमान पाते है वहीँ किराए की माँ को माँ कहने वाले शान ओ शौकत - इज्ज़त पैसा और सममान पाते है यूँ भी अब माँ बाप की इज्ज़त कौन करता है फिर हिंदी तो महज़ भाषा ठहरी क्या फर्क पड़ता है ...................... रवि कवि

हम मजदूरो पर तरस खाइए ...............

भूखा हूँ रोटी खा लेने दीजिये सिर्फ इतनी सी जरुरत है मेरी इसको समझ लीजिये फिर मुझसे बेशक विकास की बात कर लेना सपनो की दुनिया दिखा देना मेरा योगदान जरुरी है देश के लिए ये पाठ भी पढ़ा देना फिर भले ही मेरा सर्वस्व समर्पण मांग लेना मगर अभी में हाथ जोड़ता हूँ आपके मुझे बख्श दीजिये कुछ भी नहीं है पहले ही मेरे पास कम से कम मेरी जमीन से अपनी गिद्ध नज़र हटा लीजिए जैसी भी है जितनी भी है पर ये जमीन मेरी माँ है जो मेरे और मेरे बच्चों का जैसे भी सही पेट पालती है माना कम मिलता है मगर फिर भी सुकून है क़र्ज़ में डूबा हूँ - मगर फिर भी मालिक हूँ मत बनाओ मुझे श्रमिक या गुलाम किसी फेक्टरी या कंपनी का छोड़ दीजिये मुझे, और चले जाइये ओ गरीबो को धोखे से लूटकर अमीर बन ने वालों महल खड़े करके गरीब की झुग्गी को भी न बख्शने वालों हम मजदूरो पर भगवन के लिए तरस खाइए अपने सपनो के लिए मेरे सपने मत उजाडीए मेरी भूमि मेरा सब कुछ है मेरी जिन्दगी पर तरस खाइए ......... रवि कवि

तारे जमीन पर ..............

परिवर्तन की बयार चल पड़ी है कुछ इस रफ़्तार से कि हर चीज़ बदल रही है क्या जमीन पे, क्या आकाश से हिमालय धरती पर पिघल रहा है, पानी चाँद पर मिल रहा है बेजुबान जानवर शहरों में बढ़ रहे है, आदमी जंगल पर राज कर रहा है गंगा जल अपवित्र और बोत्तल बंद मिनरल वाटर मुंह चढ़ रहा है हवाई बस और हवाई रेल बन रही है लड़कियों का पहनावा पारदर्शी, और लड़को के नाक कान छिद रहे है अब तो हारमोन बदलकर सेक्स भी खूब चेंज होने लगा है दुनिया को गे और लेस्बियन कल्चर का सबक भी मिलने लगा है हत्यारे बलात्कारी नेता बन रहे है, संत कि तरह पूज रहे है बेचारे संत चरित्र अपमानित और इल्जामों से अटे पड़े है रात रात भर जागना और दिन दिन भर सोना अब काम धंधे भी कुछ इस तरह के हो रहे है खेत खलियान सूने, चौपाल पे मातम मिलता है और कंप्यूटर पर इ- चौपाल कि रौनक मची है एसी दफ्तरों में बैठकर ग्रामीण विकास हो रहा है सामाजिक विकास का नारा, और खुद के घर का विकास ज्यादा हो रहा है कर्ज दे देकर, अमीर बनाने कि परंपरा भी खूब चल पड़ी है कितने मजे कि बात है, कि अब परमाणु एटम बम बना बना कर देश खुद को सुरक्षित महसूस करते है हद तो अब इस कदर हो गयी है कि धरती

हम सबका मजहब...............

क्यों पलट नहीं देते उस व्यवस्था को जो सबको बाँट देती है समझ कर कोई टुकडा, इंसान को जाती, धर्म में काट देती है हमारे खून में नहीं कोई भेदभाव तो दिलो में ये नफरते क्यों बोई जाती है क्यों कभी हिन्दू, कभी मुस्लिम बनाकर जीवन का चीरहरण होता है खुदा चाहे जन्नत में बसे या भगवन स्वर्ग में इस बात से क्या फर्क पड़ता है जरा खोल मन की आँख तो देख कि राम भी हम है और पैगम्बर भी हम तभी तो मरते को जिन्दगी हम डाक्टर बनकर देते है अज्ञान कि अँधेरे को हम शिक्षक बनकर दूर करते है विकास कि पगडंडियों को हम ही इंजिनियर बनकर चढ़ते है मुश्किल के वक़्त हम ही एक दुसरे के मददगार होते है जब हर इंसान में उस रब कि हिस्सेदारी है तो काहे को इस भेद में पड़ते है यूँ भी नौ महीने से ज्यादा कोई गर्भ में नहीं रहता साँसों का आना जाना सबका एक जैसा है हसना रोना सबमे छिपा है इसलिए इस जाती/धर्म के चक्कर में पड़ना बेहद फिजूल है हम तो सब कठपुतली है बनाने वाला तो कोई और है जिसने हमको जीने का मौका दिया है इसलिए उसके दिए मौके को प्रेम से रहकर जीना मेरा आपका सबका परम कर्त्तव्य है भेदभाव नफरत और संकीर्ण मन कभी भी उस मालिक कि सोच नहीं हो सक

आम आदमी का मतलब ............

जिन्दगी में आम आदमी का जीवन जीना कितना मुश्किल काम होता है आम आदमी मतलब!!!!!!!!! जिसके जीवन का मोई मोल नहीं भीड़ कि भरमार में एक मामूली अदनान सा, जिसकी कही कोई इज्ज़त नहीं घर में वो आम आदमी कम तनख्वा कि किल्लत से जूझता है पत्नी और बच्चों कि फरमाईशों का नाश्ता जिसे हर रोज़ मिलता है और रात के भोजन में नित नयी घरेलु उलझनों का तड़का लगा मिलता है ये आम आदमी शहर कि भीड़ में जुड़ता हुआ जिन्दगी से खेलती बसों में ठूसकर बिना बात पर अन्य मुसाफिरों से या कन्डक्टर से गाली गलौज, अपमान सहता हुआ मन को मसोसता हुआ दफ्तर हर बार कि तरह लेट पहुँचता हुआ सुबह कि बेला में भी शाम वाली थकावट सा थका थका दीखता है नौकरी प्राइवेट है इसलिए बॉस कि झिड़की, तनख्वाह से ज्यादा मिलती है दोपहर को लंच में वो ही रोज़ रोज़ सस्ती सी दाल और साथ सूखी रोटी खाने में होती है उस आम आदमी को यह भी याद नहीं रहता कि कब आखरी बार उसने अपने लिए नए कपडे या जुते ख़रीदे थे और हालत ये हो जाती है कि फैशन कि आड़ में स्टिक्कर लगा लगा कर पैबंद के जोडो से लबरेज़ या किसी सेल के पुराने कपडे पहनता है और फटे पुराने जूते को मालिश पोलिश कर कर के जैसे तैस

रिश्तों की बगावतें !!!!!!!!!!!

मुझे गुरेज नहीं है स्वीकारने में कि तुम मेरे नहीं हो मुझे अहसास है कि तुम अपनी उलझनों से घिरे हो ये रिश्तों कि बगावतें अब यूँ भी बहुत आम हो चली है शहरों में ये बयार बहुत तेजी से चल रही है संयुंक महज एक शब्द रह गया है निज स्वार्थ से युक्त हर जिन्दगी हो चली है साथ रहने कि परंपरा बेमानी हो गयी है प्यार से दो बोल बोलने कि रवायत कहाँ रही है जिसे दोस्त समझो, जिसे अपना समझो सब दिखावे के मुखोटे पहने चले आते है हमदर्द बनकर मिलते है और उल्टा दर्द बढा कर चले जाते है ये ही पहचान अब शहर कि जिन्दगी बन गयी है ख़ास अब कुछ भी नहीं रहा हर चीज़ सौदा बन रही है भीड़ के बोझ तले संस्कृति दबने लगी है सांस लेना भी कभी कभी दूभर लगता है क्या क्या संभाले इस तेज रफ़्तार जिन्दगी में जिसमे संवेदनाये अर्थ हीन हो जाती है अनमोल चीज़ बेमौल और बेमौल चीज़ अनमोल बन जाती है बड़े बुजुर्गों कि हैसियत कहीं कुछ नहीं दिखती हर कोई मनमानी जिन्दगी जीना चाहता है दूर जाने कि अब कोई जरुरत नहीं हमको एक छत के नीचे रहकर भी जिन्दगी फासलों में कटना आम हो गयी है .......... रवि कवि

शहर तो मिल गया पर ...............

मैं उस दिन से दुखी हूँ जिन दिन से शहर से जुडा हूँ मैं शहर से क्या जुडा तब से नित रोज़ टूट रहा हूँ पहले अपने रुट्ठे फिर सपने टूटे जिस चमक ने चका चौंध किया क्या मालूम था कि, एक दिन ये मन की शांति हे छीन लेगी संवेदनाये मरती चली जाएँगी स्वार्थ और मजबूरी के नाम पर अनचाही घटनाये घटती रहेंगी लोग तो अब यह भी कहने लगे है कि मैं अब पहले जैसा नहीं रहा बहुत बदल गया हूँ लेकिन सच तो यह है कि मुझे खुद नहीं मालूम मेरे साथ ऐसा क्या हुआ जो धुप मैं जले चेहरे कि रंगत के साथ साथ मेरे अन्दर का इंसान भी जल गया पैसा पैसा और पैसा जरूरते तो पूरी हो गयी लेकिन गुरूर पूरा नहीं हुआ मैं ये कहाँ से कहाँ आ गया जहाँ कोई साथ नहीं है मेरे न सच्चा दोस्त, नो हमसफ़र जिसको देखता हूँ वो मुझे मेरे जैसा ही दीखता है यकीनन शहर तो मिल गया मगर सुख चैन सब हर गया है गाँव मैं था तो हर शख्स अपना भाई अपना दोस्त, बड़ा ही अपनापन था लेकिन शहर मैं पूरा जीवन खर्च करके भी एक सच्चा अपना कोई न मिला अब पूरा जीवन खपा के शहर मैं बस इतना ही मर्म समझ मैं आया है कि शहर मैं जीने वाले वो परिंदे होते है जो सुकून रुपी गाँव के घोंसले को तिनको कि झोंपडी समझ

जोड़ तोड़ जुगाड़ बस !

कभी कभी बहुत मलाल होता है शहर मैं जीना कितना मुश्किल होता है इधर रात की नींद भी पूरी नहीं होती और उधर सुबह का सूरज निकल आता है दौड़ते भागते - पेट की आपाधापी मैं मालूम ही नहीं पड़ता, और दिन गुजर जाता है कभी सोचने और समझने की फुर्सत ही नहीं मिल पाती बस अर्थ जुटाने में हे सारा वक़्त निकल जाता है कब बचपन बीता, कब जवानी से बुढापा आ गया कुछ भी याद नही रहता तीस मैं भी जीवन साठ सा नीरस बन जाता है मुश्किलें, किल्लते और जिल्लते सहते सहते आँखों का पानी और मन का सब्र सब खो जाता है सब टूट जाता है न दिल मैं फिर कोई दया बचती है न ही मानवीय संवेदना रह जाता है तो सिर्फ जोड़ - तोड़ - जुगाड़ बस ! ये ही सार शेष रहता है जीवन के अंत मैं ................. रवि कवि

भीड़ का शहर

भीड़ ही शहर है इत्तेफाको की भरमार है अपनेपन की जगह नहीं है हर चीज़ यहाँ व्यापार है जरा संभलकर रहिये हर निगाह को मौके की तलाश है आपके भ्रम सब हो जायेंगे काफूर यहाँ दगाबाजों की लम्बी कतार है न सुबह की ताजगी मिलती है न ही सुकून की शाम शोर, प्रदुषण और पेट की आपाधापी में जीवन की रौनक दिनोदिन घट हो रही है फुर्सत की बात की तो समझो गुनाह कर दिया फालतू शख्स भी यहाँ पहने रहता व्यस्ताओं का नकाब है मैं, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे, सिर्फ इतनी सिमटी सी जिन्दगी जीना ही अब शहर की पहचान है.................. रवि कवि

कुछ खुली पंक्क्तियाँ......................

( १) हर चीज़ सो़च समझ कर करना जीवन का सफ़र है अपना अगर गलती भी करो तो इस फक्र से की अंजाम देख कर सीना तना रहे सब्र से............ (२) नाव को देख कर बैठोगे तो खतरा जान को होगा और जो मांझी को देख कर बैठोगो तो खतरा दिल को होगा अब फैसला तुम्हारा है की कौन सा खतरा लेना तुम्हे प्यारा है ............... (३) मोहब्बत भी एक ताबूत से अधिक कुछ नहीं ताबूत बेशक चन्दन की लकडी का ही क्यों न हो पर दफ़न उसमे लाश ही होती है..................... (४) हम कल भी चुप थे हम आज भी चुप है और हम आगे भी चुप ही रहेंगे जरा हम तो देखे वो हमसे चुप रहने की होड़ कब तक करेंगे ................... (५) में ये कहता था की तुम मेरी हो तुम ये जताती थी की तुम किसी और की हो पर अब ये जमाना कह रहा है की हम एक दुसरे के है................ (६) यूँ तो ढहाई अक्षर भी पुरे नहीं इस प्यार शब्द में मगर जिन्दगी भी पड़ जाती है छोटी इसे गुजारने में...................... (७) घर की मोख में से झाँक कर वो मुझे देखते है रेत पर मेरा नाम बार बार लिखकर मिटो देते है मोहल्ले

मीडिया और कविता में फर्क....

लोग कुछ भी कहें कुछ भी समझें यह हक़ है उनका पर हर बार जो वो समझें सही ही हो, ऐसा नहीं होता यूँ भी अश्लीलता देखने वालों की आँखों में होती है माँ जब दूध पिलाती है तो ममता छलकती है पत्नी जब अपने पति को प्रेम करती है तो सृष्टि की सृजनता होती है प्रेम का प्रदर्शन नहीं होना चाहिए मगर एकांत में मधुर मिलन के भाव को समझना चाहिए यौवन जीवन की सच्चाई है प्रेम जीवन की सचाई है मन से मन का मिलन जितना ज़रूरी है उतना ही तनसे तन का मिलन भी ज़रूरी है अगर बिना कहे बात बनती होती तो कंडोम को इतने प्रचार की ज़रूरत कभी नहीं होती फिर भी आज की मीडिया से कहीं ज्यादा कविता में शरम है बात कहने के अंदाज़ में बड़ा फर्क है जो मीडिया रात दिन यह बताता है की कपड़े के अन्दर नंगा शरीर कैसा दिखता है वही बात एक कवि शरीर की खूबसूरती को बयान एकदम निराले अंदाज़ में करता है रही बात शब्दों में अपना भाव पिरोकर कहना हर कवि का अपना अंदाज़ होता हैं बस मन के भाव पहुँचाना ही कवि का संकल्प होता है व्यापार नहीं करता कवि न ही बिकाऊ मीडिया है कविता तो बस इतना चाहती है की समाज आगे बढ़े और शांत रहे और हर ओर खूबसूरती बिखरे बस इतना ही उसका मर्म ह

नाम है मेरा विश्वास

हौसला - खोटी उम्मीद का विकल्प हूँ मैं साँझ से जुदा होते उजियारे की आस का बन्धन हूँ मैं मोतियों से गुँथी माला को बाँध कर रखने वाला धागा हूँ मैं अतृप्त हृदयों की प्यास को बुझाने वाला अमृत हूँ मैं धरा में शान्ति के विचार उत्पन्न करने वाला दूत हूँ मैं नफ़रत को मिटा के प्रेम से सर्वस्व भरने वाली अदृश्य शक्ति हूँ मैं अंधकार से प्रकाश को मिलाने वाली अद्‌भुत कड़ी हूँ मैं ज़माने के हर दर्द को रंग से रँगीन करने वाला रंगरेज़ भी हूँ मैं कभी छिपा हुआ सत्य कभी उघडा हुआ दर्शन है मेरा मैं आज के संसार में जीवित हूँ मगर अपनी पहचान से एकदम गुमनाम सा खोया खोया, मगर हर दिल में रहता एकदम सक्रिय सा जानते हो मुझे क्या तुम नाम है मेरा विश्वास

जननी के सम्मान की खातिर

हम नारी हैं हम नारी हैं हम नारी हैं देश को आगे ले जाने की अब हमारी बारी है शक्ति की परिभाषा हैं हम धैर्य की पुजारिन है रिश्तों में गूँथने वाली माला में डोर भी हमारी है होंसलों के आगे हमारे हर चट्टान टूटी है नारी को कमज़ोर न समझो मिटटी की मूरत ना समझो अब परिवर्तन की राह पे हमको चलना है अधिकार अपने पाने को पूरी ताकत से लड़ना है जननी के सम्मान की खातिर आगे हम अब आए हैं यह मत भूलो तुम की नारी बिन पृथ्वी सूनी है माता पत्नी और बेटी के रूप में सृष्टि की जननी है हम नारी हैं हम नारी हैं हम नारी हैं देश को आगे ले कर चलने की अब हमारी बारी है

KYONKI AAJ HAI HAMRI CHUTTI KA DIN

KYONKI AAJ HAI HAMRI CHUTTI KA DIN # Aao aao khub khaye, Masti kare dhamal machaye Kyonki aaj hai hamari chutti ka din, Mummy ki na sunege Papa ki na manege Aaj toe padhenge hum bilkul nahi Kyonki aaj hai hamari chutti ka din Rani bhi aayegi Sonu bhi chalega Aur mera pyara mohan bhi rahega Sab jayenge khelne Parak mein sang Kyonki aaj hai hamari chutti ka din Kapde hamare hoe jaye gande Ladenege jhagdenge khub hum Mitti se nahayenge Pani mein lagayenge khub dumbki hum Kyonki aaj hai hamari chutti ka din Dada ko satayenge Dadi ko bhagayenge Badi didi ko hum khub rulayenge Aage piche apne sabko ko nachayenge Kisi ki bhi na itni sunege hum Kyonki aaj hai hamari chuti ka din………. ( By :RAVI KAVI)

ओ मेरी अनुगामिनी

सुख दायिनी मंगल कारिणी सुमधुर जीवन रचने वाली बनकर मेरी सहचारिणी प्रीत के पल्लव संचित करके घर आँगन मेरे आई हो ! ! रिश्तों में विश्वाश का बंधन जीवन में प्रेम का स्पंदन तुम साथ अपने लाई हो !! सृजनता, सहनशीलता, संस्कार के गहनों सा सुसज्जित रूप तुम्हारा यूं ही दमके सर्वदा !!! ओ मेरी अनुगामिनी है स्वागत के द्वार खुले तुम्हारे अभिनन्दन में तुम इसमे प्रवेश करो.........रवि कवि

सिर्फ़ और सिर्फ़ २७ दिन ही शेष है

चलो एक लंबे अरसे बाद ही सही अब वक्त आ ही गया है सिर्फ़ और सिर्फ़ २७ दिन ही शेष है हमारे परम प्रिये महेश बाबु के सामजिक कुंवारेपन से मुक्ति के जल्दी ही वोह अब एक से दो हो जायेंगे और गृहस्थ जीवन की शुरुआत करेंगे बचपन जवानी से गुजरते हुए शादी के पवित्र बंधन में बंध जायेंगे यूँ टे महेश बाबु का जीवन किसी परिचय का मोहताज़ नही पर चूँकि यह ऐसे घड़ी है जब महेश बाबु के जीवन का सबसे अहम् दौर है और सच कहा जाए टे जितना भी कहा जाए उतना ही कम होगा क्योंकि इतना महान जीवन चरित्र से प्रेरणा मिलना बड़े ही सौभाग्य का विषय है और मुझे उनके जीवन के इतने निकट आने का मौका मिला समझता हूँ की जीवन धन्य हुआ है महेश बाबु बचपन से ही नटखट परवर्ती के रहे है स्वभाव से शर्मीले मगर अद्भुत प्रतिभा के धनि है हर कला में पारंगत और अच्छे अच्छों के बोलती बाँध करने में इनका कोई सानी नही है कॉलेज के जमाने में भी इनकी खूब धूनी जमती थी हर लड़की इनके दीदार को कुछ इस तरह तरसती थी मानो सावन की पहली बारिश के लिए तपती धरती तरसती हो इनका सौंदर्य और निखार मानो किसी राजकुमार से कम न था शिक्षा हो या प्रेम दोनों विषयों में इन्होने जमकर

मुबारक हो तुमको यह शादी तुम्हारी

मुबारक हो तुमको यह शादी तुम्हारी सदा खुश रहो ये दुआ है हमारी की मुद्दत के बाद आती है ये घड़ी सुहानी जब मिलती है प्रेम दीवानी नही इतना अच्छा कोई और पल है दिलो के मिलन का ये उत्सव है नई उमंग और तरंग का ये मौसम रहे यूँ ही बना हरदम येही है हमारी सबकी दुआ मैं रहो तुम खुश इस नई जिन्दगी में वो आए लेके ऐसी खुशिया महकता रहे घर का इक इक कोना पलकों में रख्नना तुम उसका सपना येही है हमारी तुम्हारे लिए दुआ मुबारक मुबारक मुबारक मुबारक होए तुमको मुबारक यह खुशिओं का तोहफा ...........................रवि कवि

शंखनाद अब बस है होने वाला.........

बहुत हो मुबारक ये शादी का उत्सव चला है एक और दोस्त घोडी पे चड़ने प्रियंका संग राजीव और अमिता संग महेश को बधाई जो चले है सात फेरे लेने मिलन के नया ये जीवन लाये खुशियों की दौलत परिवार में फ़ले वधु का आगमन सौभाग्य आए बनके तुम्हारा भुला दे हर एक दर्द देके प्रेम का सहारा जब होने लगे मन व्यथित तो उसका देख चेहरा उड़न छु हो हर अवसाद तुम्हारा सुबह अब होगा अब कोई नींद से जगा के अपने आगोस में लेने वाला सुबह की चाय की मिठास अपने होंठो से देने वाला पुरे हक़ से सम्मान से अपना सर्वस्य तुम्हे देने वाला एक दुसरे के लिए हमेशा बने रहो और ख्याल रखो संभाल के रखो एक दुसरे की परवाह करो येही है जीवन के सबसे अनमोल छन बस समझिये प्रेम से भरी नई जिन्दगी का शंखनाद अब बस है होने वाला............... बहुत बहुत शुब्कामने मेरे दोस्तों आपको और आपकी होने वालिओं को......... दुआओं सहित .........रवि कवि

सचमुच अब हम संवेदनशील नही रहे है

जनता जीत गई और लोकतंत्र हार गया दिल्ली के दरबार में फ़िर से वोही जीत गए महगाई का झूठा रोना आतंक के नाम पे झूठा डरना जनता यह सब करती रही जब मौका आया परिवर्तन का तो फ़िर से पाला बदल गई अब लोग ख़ुद पर ही विश्वास नही करते है पढ़े लिखे सिर्फ़ बातें ही करते है वोट देना अपराध समझते है अब यह सब होता है जिसे हम लोकतंत्र कहते है क्योंकि जो नाकाम रहे देश चलाने में हमने फ़िर उनको लाकर यह सिद्ध कर दिया है यकीनन अब महगाई को सहने की हम में हिम्मत आ गई है आतंक को सहने की ताकत आ गई है पर अब महगाई बढ़ने का झूठा रोना आतंक के नाम पे झूठा रोना बंद होना चाहिए जनता ने जनता की भावनाओ को ही हरा दिया सचमुच अब हम संवेदनशील नही रहे है ये पक्का हो गया है.................................... रवि कवि

SWAGAT KARE NAV VARSH KA

SWAGAT KARE NAV VARSH KA NAV VARSH 2009 KI YEH BELA LAYE JIWAN MEIN ANMOL KHUSIYON KI SUAGAAT JIWAN BANE MADHUR APNE BANE MRIDUL RISHTON KO MILE NAYA SAMBAL KADAM BADHE MANJIL KI TARAF NIT NAYI UNCHAI MILE ISHAR KA AASHISH MILE BADO KA DULAAR BADHE CHHOTON PAR SNEH RAHEIN JIWAN KI HAR MUSKIL MEIN NAYI SOCH AUR NAYE UTTHAAN KI AUR CHALE HAAR NAHI JIWAN KA MATLAB AUR JEET BHI NAHI JIWAN KA MATLAB HAAR – JEET TO BAAZIGARI HAI MEHAZ PREM HI ISS JIWAN KA PEHLA AUR AAKHIRI MANTRA HAI JOE SAAL GAYE UNSE SABAK SEEKHNA JARURI HAI AUR PARIVARTAN USKE LIYE JARURI HAI HAMESHA HUM HI NAYE SAAL SE UMEED KARE YEH DASTUR BHI BADALNE KA WAQT HAI MATLAB NAV VARSH BHI HUMSE BAHUT UMEED RAKHTA HAI AUR UN UMEED KO PURA KARNA MERA AAPKA SABKA KARTAVYA HAI............................. NAV VARSH PAR YEHI PRANN KARE……………….. AUR SWAGAT KARE

INKO BHI BANA DE KISI EK KAAA.......

JINKI NHAI HUI ABHI TAK SHADI KEHNE KO YUN TOE WOH KUNWARE HAI MAGAR SHAN O SHAUKAT KE ANDAAZ BADE HE NIRAALE HAI HAR LADKI HOE KUNWARI YA SHADISHUDA SAB SE ISHQ FARMATE HAI BESHAQ SAB KUCH HOE EK TARFA MAGAR DIL JARUR BEHLAATE HAI HAR MAUKE PAR REHTI HAI INKI NIGAHON KO TALAASH DUNDHTE REHTE HAI YEH DIN RAAT AUR JAB KABHI NAHI HOTI PURI MURAAD TOE TOE BHAI HAI NA "APNA HAAATH JAGANNATH" AUR FIR AGLE ROZ SE SHURU HOTI EK NAYI TALAASH BUS CHAL RAHA HAI KAAM AISE HI KHUSH HAI APNE JIWAN MEIN SABHI ACHI HI BAAT HAI PAR YEH SAB KUNWAREPAN TAK HI HOE PAATA HAI SHADI KI BAAD SADAK PAR LADKI KAB GAYI KAHA GAYI KUCH BHI AHSAAS TOE KYA SAAMNE SE GUZAR JAANE PAR BHI MALUM NAHI PADTA BESHAQ GAZAB KI BALA HOE NAGINA HOE SAB DUSRON KE MUH SE JAAN PADTA HAI SUBAH SE SHAM TAK KAHA HAI ? KYA KAR RAHE HAI ? KISKE SAATH HAI ? SABKA PURA HISSAB RAKNA PADTA HAI YA KAHE PURI DAIRI HE MAIN TAIN KARNI PADTI HAI SUNDAY KO SATURDAY OFFICE KI CHUTTI MAGAR MADAM KI DUTY KARNA PADTA HAI AUR SHADI KE BA

जीने की कला

तजुर्बा ऐ जिन्दगी बहुत हो चला अभी तक पर कुछ न मिला जहाँ से चला था फिर वहीँ आ हुआ खडा ये में चल रहा था या ज़मी जो भी हो मगर पहुंचा सफ़र कहीं नहीं सुबह कहीं शुरू होकर शाम तक जिन्दगी रोज़ आती रही जाती रही कुछ वक़्त बचपन का बीता दोस्त संगी मस्ती सब के बीच कहीं गुजरता न जाने कब बड़ा हुआ इधर उधर जाऊ किधर की उधेड़बुन कहीं होता हुआ बस चुन लिया एक रास्ता कॉलेज के दिन या कहूँ बहारों के पल काश ! यह लम्हे न होते कभी भी ख़तम मगर वक़्त के साथ न चाहते हुए बदलना पड़ता है और जीने की लगन के लिए सब कुछ सहना पड़ता है इसी मोड़ पर जिसे जवानी कहा जाता है मोहब्बत से भी सामना बस हो जाता है कल की न कुछ पता होते हुए भी प्यार की कशिश में कुछ कीमती वक़्त फिसल जाता है सफलता के लिए नहीं खुद के वजूद ले लिए दर्द ऐ मोहब्बत निभाना पड़ता है वो बात अलग है बाद में बे पनाह खामियाजा भी चुकाना पड़ता है लेकिन सब ले बाबजूद यह भी जरुरी कर्म है आज की पीढी ले लिए इसलिए इस फेर में पड़ना समझ लीजिये मजबूरी होता है खेर इसके बाद की जिन्दगी में जब हकीकत से सामना होता है बड़ा मुस्किल दौर वो होता है अछी नौकरी की तड़प दिल में लिए ये न जान