भीड़ का शहर

भीड़ ही शहर है
इत्तेफाको की भरमार है
अपनेपन की जगह नहीं है
हर चीज़ यहाँ व्यापार है

जरा संभलकर रहिये
हर निगाह को मौके की तलाश है
आपके भ्रम सब हो जायेंगे काफूर
यहाँ दगाबाजों की लम्बी कतार है

न सुबह की ताजगी मिलती है
न ही सुकून की शाम
शोर, प्रदुषण और पेट की आपाधापी में
जीवन की रौनक दिनोदिन घट हो रही है

फुर्सत की बात की तो समझो गुनाह कर दिया
फालतू शख्स भी यहाँ पहने रहता व्यस्ताओं का नकाब है
मैं, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे, सिर्फ इतनी सिमटी सी जिन्दगी
जीना ही अब शहर की पहचान है.................. रवि कवि

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