तारे जमीन पर ..............

परिवर्तन की बयार चल पड़ी है कुछ इस रफ़्तार से
कि हर चीज़ बदल रही है क्या जमीन पे, क्या आकाश से
हिमालय धरती पर पिघल रहा है, पानी चाँद पर मिल रहा है
बेजुबान जानवर शहरों में बढ़ रहे है, आदमी जंगल पर राज कर रहा है
गंगा जल अपवित्र और बोत्तल बंद मिनरल वाटर मुंह चढ़ रहा है
हवाई बस और हवाई रेल बन रही है
लड़कियों का पहनावा पारदर्शी, और लड़को के नाक कान छिद रहे है
अब तो हारमोन बदलकर सेक्स भी खूब चेंज होने लगा है
दुनिया को गे और लेस्बियन कल्चर का सबक भी मिलने लगा है
हत्यारे बलात्कारी नेता बन रहे है, संत कि तरह पूज रहे है
बेचारे संत चरित्र अपमानित और इल्जामों से अटे पड़े है
रात रात भर जागना और दिन दिन भर सोना
अब काम धंधे भी कुछ इस तरह के हो रहे है
खेत खलियान सूने, चौपाल पे मातम मिलता है
और कंप्यूटर पर इ- चौपाल कि रौनक मची है
एसी दफ्तरों में बैठकर ग्रामीण विकास हो रहा है
सामाजिक विकास का नारा,
और खुद के घर का विकास ज्यादा हो रहा है
कर्ज दे देकर, अमीर बनाने कि परंपरा भी खूब चल पड़ी है
कितने मजे कि बात है, कि अब परमाणु एटम बम बना बना कर
देश खुद को सुरक्षित महसूस करते है
हद तो अब इस कदर हो गयी है
कि धरती को बर्बाद करते करते,
आदमी अब चाँद पर भी रहने कि कोशिश में लगा पड़ा है
शायद अब वो दिन दूर नहीं लगते जब,
आदमी धरती को उजाड़ कर चाँद पर दुनिया बसा लेगा
और उन बेचारे तारों को जमीं पर शिफ्ट कर देगा............... रवि कवि

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