सचमुच अब हम संवेदनशील नही रहे है

जनता जीत गई
और लोकतंत्र हार गया
दिल्ली के दरबार में
फ़िर से वोही जीत गए
महगाई का झूठा रोना
आतंक के नाम पे झूठा डरना
जनता यह सब करती रही
जब मौका आया परिवर्तन का
तो फ़िर से पाला बदल गई
अब लोग ख़ुद पर ही विश्वास नही करते है
पढ़े लिखे सिर्फ़ बातें ही करते है
वोट देना अपराध समझते है
अब यह सब होता है
जिसे हम लोकतंत्र कहते है
क्योंकि जो नाकाम रहे देश चलाने में
हमने फ़िर उनको लाकर
यह सिद्ध कर दिया है
यकीनन अब महगाई को सहने की हम में हिम्मत आ गई है
आतंक को सहने की ताकत आ गई है
पर अब महगाई बढ़ने का झूठा रोना
आतंक के नाम पे झूठा रोना
बंद होना चाहिए
जनता ने जनता की भावनाओ को ही हरा दिया
सचमुच अब हम संवेदनशील नही रहे है
ये पक्का हो गया है.................................... रवि कवि

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