अजनबी का अहसास.........................
दौड़ती कार में जो तुने ज्यों ही खुली जुल्फों में अपने हाथ की मखमली उंगलिया उकेरी तो मेरे बदन में सरसराहट आ फैली सुध - बुध कुछ पल को मेरी झिलमिला सी गयी ज्यों ही होश संभाला सामने सड़क का दोराहा था क्या पता था सिर्फ इतना ही इस अजनबी का अहसास साथ जायेगा और पहेली के इस खेल का जबाब पहेली ही रह जायेगा ............ रवि कवि