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Showing posts from November, 2017

जिन्दगी ने बहुत कुछ दिया

जिन्दगी ने बहुत कुछ दिया, कुछ मन का और कुछ अपनी तरह का दिया रोज रोज हमने जिन्दगी को जिया ये सोच के जिया कि आने वाला पल बहुत खास होगा ऐसा होगा जहाँ सब कुछ मन का होगा यही आस लिए जिन्दगी रोज रोज प्रयास करती है जिन्दगी मेरी भी सबकी भी एक ही तरह से चलती है सपनो की ऊँची उड़ान हर रोज हमारे अरमान लिए उडती है और सुबह से शाम तक जिन्दगी न जाने कितने अजनबी तूफानों से लडती है आती है जाती है – ना जाने क्या क्या जिन्दगी करवाती है यही है जिन्दगी मेरी भी – तेरी भी – सबकी भी लेकिन फिर भी बहुत खुबसूरत अहसास है जीने का ये जब अपनों से जरा सा भी अपनापन जो मिल जाये मानो तेज दौड़ती जिन्दगी को सुकून की छाँव मिल जाये रिश्तों की महक से फिर जिन्दगी का खिल जाना दिल को असली सुकून देता है हम भी खास है .. ये अहसास देता है 

भारत की महिमा निराली है

राजा डुगडुगी बजाता है जनता को नचाता है ऊँचे ऊँचे वादे करके सस्ते में टरकाता है मन की बात बहुत करता है काम की बात छिपाता है दुनिया का चक्कर लगा कर ढोल बड़े पिटवाता है कभी नोटबंदी है करता कभी जीएसटी में फंसाता है आर्थिक नसबंदी से भ्रस्टाचार को डराता है उत्पादन सब ठप्प पड़ा है और कारोबार हो गया सब चौपट पर राजा जी कहते है विकास हमारा है चौकस न खाऊंगा न खाने दूंगा नारा भी वो देते है लेकिन बस ये नारे है जो जनता को सुनाते है पंडाल के पीछे खाने वाले अब भी भरपूर मजे उड़ाते है बायोमेट्रिक के डंडे से काम सरकारी होने का भ्रम बखूबी जारी है असली लाल फीता शाही का राज अभी भी कायम है   बेटी बचाओ की बात है करते  पर असल में बेटों को बचाते है  “ बेचारा बेरोजगार आज भी उम्मीद से खड़ा है उसी मुकाम पर   जहाँ पर उसे भूतपूर्व राजा ने छोड़ा था” वन नेशन वन टैक्स तो कर ने सके पर “ वन नेशन वन गवर्नमेंट” पर दिल से काम जारी है सारी नदियाँ जुड़ गयी है कागज पर भ्रस्टाचार खतम हो गया वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट पर अयोध्या में वर्षो बाद मनी दिवाली है चुनाव

लोग कहते है कि सम्मान दीजिये

लोग कहते है कि सम्मान दीजिये हम कहते है की रहने दीजिये क्यूंकि जो जीवन भर न मिला उसका क्या ख्वाब देखना हां पर जो जिन्दगी भर भरपूर मिला ... अपमान अब आदत सी हो गयी है उसके साथ जीने की इसलिए नहीं चाहिए अब कोई दौलत सम्मान की यूँ भी ये दुनिया तो भरी है आडम्बरों से जहाँ कोई कायदा नहीं चलता एक तरह से एक दुसरे को काटो और लोगो को बांटो इसी नियम पर ये संसार चलता है बातें मानवता की दुहाई ईमानदारी की लेकिन असल में सौदा तो चालों और कपट से ही होता है यहाँ कोई देता है तो इसलिए देता है क्यूंकि बदलें में उसको आपसे कुछ और बड़ा लेना होता है रिश्तें भी मंडी की तरह यहाँ बिकाऊ रहते है नोटों की दौलत जहाँ वहीँ ये भी खड़े होते है भले मानस की यहाँ अब किसी को चाह नहीं लोभ और तुच्छ सोच सब पर हावी है अब ऐसे में इस संसार का कोई भी सम्मान किसी प्रपंच से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता और कोई प्रपंच मेरे लिए सम्मान कदापि नहीं हो सकता इसलिए मुझे मेरी गुरुबत ही प्यारी है कमसे कम जैसी भी है मेरी है और किसी और में इसे अपनाने की हिम्मत तनिक भी नहीं है ...... रवि कवि 

मैं विद्रोही हूँ तो .......

मैं विद्रोही हूँ तो मुझे विद्रोही रहने दीजिये बेहतर होगा यही कि आप मेरी मनमर्जी मुझे करने दीजिये मैं नहीं बना हूँ आपकी दुनिया के लिए मुझे भाती नहीं कदापि ये नौटंकिया दुनियादारी की न कभी समझ में आते है ये बेहूदा टंटे जाति बिरादरी के लोग पीकर झूठी शराब अगर जी रहे है मस्ती में तो मुझे नहीं रहना ऐसी सोहबत में नशे में अंधे समाज को भला कोई क्या समझाएगा मानवता को जो रोज बेचते है अपने घटिया स्वार्थ के बाजार में ऐसे जिंदे मुर्दों के शहर में जीना जिदंगी कौन चाहेगा जहाँ पर दिन घुटन से बेचैन हो रातें काटती हो साँसों को एक अंधी दौड़ में दौड़ने वालों के बीच मुकाबला जहाँ चलता रहता है दिन रात कैसे मैं कहूँ खुद से कि ये ही जीवन है मेरे मन का सच तो ये है की मैं तुम्हारी तरह कैद में घुटी साँसों का सौदा नहीं कर सकता कुछ पाने के लिए खुद को बेच नहीं सकता इंसानियत हो.. प्रकृति हो.. या भावनाए जीवन की मैं कदापि इनसे खिलवाड़ नहीं कर सकता अगर ये सब विद्रोह है तो मेरा विद्रोह ही समझ लीजिये कुछ न पाकर सुकून से जीना ही मुझे कुबूल है ..... रवि कवि

ये नेता तो देश का चीरहरण पल पल कर रहा है

देश की राजनीति का चीरहरण नेता रूपी दुशासन हर रोज करता है मायावी ..छलावी हरकतों से मानवता पर कड़ा प्रहार करता है ना राम का कृष्ण का ना किसी धर्मं का यहाँ पर आचरण दिखता है ये तो रावण, कंस, शिशुपाल और शकुनी की तरह स्वार्थ की चालें चलता है हर रोज नए प्रपंच ठगने के शातिर होकर दांव चलता है खादी को बदनाम और माँ भारती का अपमान बेशर्म होकर करता है वोट और सिर्फ वोट से ज्यादा नहीं कीमत जिसके लिए इंसान की बे-हया होकर ये ढोंग रचता है राजनीति बेच बेच कर घर अपना और अपनों का भरपूर भरता है ईमानदारी को रोज अपने जूतें के तलवे से कुचलता है जिसे नहीं है परवाह बच्चों के भूख की उनके भविष्य की युवाओं के सपनो की सिर्फ और सिर्फ लूटना जिसका एकमात्र लक्ष्य रहता है सच तो ये है कि नेता का ये चरित्र दुशासन से भी ज्यादा दरिंदा है दुशासन ने तो एक बार ही चीरहरण किया था मगर ये नेता तो देश का चीरहरण पल पल कर रहा है मगर ये नेता तो देश का चीरहरण पल पल कर रहा है  .................रवि कवि