हार जीत में केवल वक़्त का फर्क होता है

हार जीत में केवल वक़्त का फर्क होता है
प्यादे से पिट जाये वजीर कभी कभी ऐसा भी होता है
बहुत नामुमकिन अक्सर मुमकिन
और बहुत मुमकिन अक्सर नामुमकिन
होते भी बहुत देखा है
जिन्दगी एक सांप सीढ़ी के खेल से ज्यादा
और क्या होगी?
कभी जीती हुई बाज़ी
कब पल में हाथ से निकल जाये
कोई बड़ी बात नहीं होती
सपने कब बनते बनते
टूट कर बिखर जाये
ये होना भी बड़ा आम मिलता है
अपने, अपने सिर्फ दीखते है
पर होते नहीं
कब दगा दे जाये ये अपने चेहरे
इसके लिए भी मन
हमेशा तैयार रखना पड़ता है
लोगो की भीड़ में दुश्मन
जैसा कोई न मिले , दिखे
दरअसल जो दोस्त होता है
उसी चेहरे के पीछे ये
दुश्मन शख्स छिपा रहता है
लाख कर लो कोशिश
इमानदार अच्छा इंसान बनकर जीने की
पर स्वार्थ ही जीत जाता है हर बार
हर लड़ाई में
दब कर रह जाती है अक्सर सच्चाई
झूट की चीख में
हर नारा जो बुलंद होता है
कागजो, दीवारों, किताबो और सभाओ में
कही नहीं दीखता उसका रंग
जिन्दगी की राहो में
बस मुखोटे लिए जीना
मानो आज के आदमी की जरुरत बन गयी है
हर आदमी से काम निकाल कर
भूल जाना फितरत बन गयी है
शायद ये पैसे की होड़ है
जिसके आगे हर सम्बन्ध
हर सच्चाई
बेबस है
मजबूर है
लाचार है .......................... रवि कवि

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