पैसे की नींव पर इलेक्ट्रोनिक मीडिया.........................

देख झगड़ते दो बन्दर
बिल्ली ने तिकड़म लगाईं
बना के खुद को ही जज
खा गयी सबकी मलाई
ये घटना कोई किस्सा नहीं है
है एकदम सच्ची बात
बिल्ली से ही प्रेरणा पाके
आज की इलेक्ट्रोनिक मीडिया (व्यापार) अस्तित्व में आई है
नाम खबर है पर
भर भरके मसाला
बाँट रहे है यह सब जग को
चिंगारी को आग बना के
डरा रहे है यह सबको
मामूली से मामूली घटना
होती है बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़
खुद को बनाके उपदेशी
देखते है सबमे खोट
बाल की खाल निकाल कर
कर देते है सबको गंजा - नंगा
टी आर पी बढाने के चक्कर में
खुद ही रचते है शिकंजा ( स्टिंग ऑपरेशन)
१०० में से ९० कार्यक्रम प्रायोजित
ये है इनका धंधा
पंडितो पाखंडियो को रात दिन गाली बकना
फिर सुबह सुबह तंत्र मंत्र , राशिफल, वास्तु न जाने क्या क्या
फैला रखा है फालतू का गोरख धंधा
लाइव कवरेज़ इनका प्रिये शौक है
कोई आग लगाये खुद को, या आतंकी हमला करे
बढा चढा कर पेश ये हर खबर करे
सबसे पहले खबर दिखाने की
हौड सी रहती है इनमे
बिना सोचे समझे, परखे बस परोस देते है
खुद ही ये जज है और खुद ही ये कानून है
मीडिया ट्रायल करना आजकल बड़ा आम है
सच सामने आने से पहले ही
गुनहगार शरीफ और शरीफ को गुनाहगार बना देते है
थोडा सुनते है बाकी मन गड़ंत कहानी बना कर थोप देते है
खास वर्ग विशेष को बुला बुला कर बहस चर्चा करना
S M S की दुकान खोल कर
कुछ लोगो के नजरिये को देश का नजरिया बना देना
हिंदी के नाम पर कमाई करना
और अंग्रेजी की गुलामी करना
गरीब की भूख और गरीबी को बेचना
पर्यावरण की चिंता, देश की चिंता, समाज की चिंता
रंगीन प्रोग्राम बना बना कर दिखाना
क्रिकेट कोई खेल न हुआ मानो मानव की कोई आती जाती सांस हो गया
हर बाल का हर शोट का आकलन
खेल हो न हो पर पूरा बरस इस पर डिबेट चलती रहती है
बाकी खेल बेचारे दम तोड़ते है इनके आगे
जो बिकता है वोही दीखता है
अतिशयोक्ति का ये संसार है
सबसे प्रथम हम
सबसे फास्ट हम
सबसे डिफरेंट हम
हम असल दिखाते है
जनता को रखे आगे
बड़े ही कागजी नारे है इनके
पर सच में यह सब व्यापारी है पक्के
बिल्ली बनके बदर बाँट है करते
बिमारी को महामारी बनाना है
इनके उद्योग धंधे
मूल्यों और सामाजिक तंत्र
इनके लिए कोई मायेने नहीं रखते
कभी कभी बीच बीच में थोडा थोडा
देश समाज हित याद आ जाया करता है
इसलिए कुछ कुछ कभी कभी
सही मायेने में इलेक्ट्रोनिक मीडिया का फ़र्ज़ निभा लिया जाता है
ताकि बेच सके उसको भी किसी मौके पर
नेता गलत, संत गलत, सब गलत
सिर्फ एक येही सही है
माँ भी बच्चे को जन्म देने के लिए ९ महीने तपस्या करती है इन्तेज़ार करती है
पर आज की मीडिया में सब्र जैसी कोई चीज़ जिन्दा नहीं है
हर चीज़ के नतीजे पर तुंरत फुरंत पहुँच जाते है
दुरूपयोग करना अपनी ताकत का
अपने हित साधना
जैसे और उद्योग धंधे करते है
वोही सब ये भी करते है
दुःख होता है देख कर
जहाँ अब मीडिया जैसे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ
को इतना हल्का और कमजोर बना दिया है
बिकाऊ बाज़ार में हर चीज़ बिकती है
ये चीज़ सिद्ध हो चुकी है
हर चीज़ यहाँ सौदा है
हर नज़र व्यापारी है
कुछ नहीं अलग मिलेगा
सच तो ये है
पैसे की नींव पर
चल रही आज दुनिया सारी है ............................. रवि कवि

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