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नारी आज बन पड़ी है क्रांति

देखो हमारे हौंसले की बानगी नारी आज बन पड़ी है क्रांति अपने हक और स्वाभिमान की अब है उसने ठान ली हर कदम आगे बढेगा शान से जीत जायेंगे इस जहाँ से हर जिम्मेवारी करेंगे पूरी अपनी पूरी जान से नहीं हटेंगे हम पीछे आगे किसी भी तूफ़ान के पहुंचेंगे हम हर उस मुकाम पे जो चमकेगा एक दिन हमारे काम से.....................रवि कवि

एक प्रयास तो करो

वो करते है तुम सहते हो वो अड़ते है तुम डरते हो वो कहते है तुम करते हो क्या येही जीने का मकसद तुम्हारा है जुबान रहते हुए भी बे जुबान जिया जाता है तो लानत है तुम पर तुम्हारी सोच पर करनी पर जीने के अदाज़ पर जो लाचारी को जीने की मजबूरी बना रखा है किस्मत खराब है नाम का चोगा पहन रखा है क्यों समझ नहीं आता इन दो हाथों का वजूद जिनसे अगर मेहनत की जाये तो गंगा भी स्वर्ग से धरती पर लायी जा सकती है खोद के पहाड़ सुरंग बनाईं जा सकती है हर नामुमकिन चीज़ इन हाथो से और बुद्धि के सहारे संभव बन जाती है क्या ऐसा है जो मुमकिन न हुआ हो जब इरादों में ही बल न हो तो सिर्फ कोसा ही जाया जा सकता है हालत को, किस्मत को, भगवान को माँ बाप को, परिवार को, समाज को जोकि सबसे आसान काम है करना पर क्यों कभी नहीं उठ पाती खुद की ऊँगली अपनी ही ओर जो कर सके तुमसे सवाल ओर पूछ सके क्यों अब तक बेमानी जिन्दगी जी है जिस जिन्दगी का कही कोई अर्थ नहीं कोई अस्तित्व नहीं दूसरो की सफलताओं पर ही अब तक ताली बजाते रहने वालो क्या कमी थी ऐसी खुद में जो मुकाम नहीं मिला जिन्दगी भर जिया पर नाम - कुछ न किया अफ़सोस अगर अब भी नहीं बदले तुम नहीं संभले