मन चिंतन के लिए बना है
मन का बहाव
बहुत तेज गति से
ऐसे बहाता ले जाता है
जैसे सागर में
उठे ज्वार से
लहरों के चक्र वात में
सब उथल पुथल हो जाता है
मन जो कहीं टिकता नहीं
मन जो किसी का हुआ नहीं
मन जो हर बंधन से
सर्वदा आजाद रहता है
मन जिसे काबू में
करने को सारा जीवन
लग जाता है
पर हाथ कुछ नहीं आता
मन जो न हारता है
मन जो न जीतता है
मन जो राजा है
खुद अपने आप का
उसका शारीर से कोई मोह नहीं
वो जो हर दुःख हर सुख,
हर आवाजाही से परे रहता है
नियंत्रण जिसे कदापि मंजूर नहीं
दौड़ते रहना जिसकी आदत है
उलझन सुलझन जो उसके
खिलोने भर है
वोह जो कोई दस्तूर नहीं मानता
वो जो किसी परंपरा
किसी समाज की हद
सबसे जुदा रहता है
मन की गुलामी करवाना
जिसे सर्वदा भाता है
हम उसी मन को काबू करने की सोच
में जो न जाने क्या क्या करते है
पर जरा सोचा कभी
की फिर भी ये मुमकिन नहीं हुआ आज तक
क्योंकि मन नियंत्रण के लिए नहीं
मन चिंतन के लिए बना है
और ये सिर्फ उनका ही हुआ है
जिनका जीवन
चिंतन का गोता लगाने की कला को सीख लिया है
............................ रवि कवि
बहुत तेज गति से
ऐसे बहाता ले जाता है
जैसे सागर में
उठे ज्वार से
लहरों के चक्र वात में
सब उथल पुथल हो जाता है
मन जो कहीं टिकता नहीं
मन जो किसी का हुआ नहीं
मन जो हर बंधन से
सर्वदा आजाद रहता है
मन जिसे काबू में
करने को सारा जीवन
लग जाता है
पर हाथ कुछ नहीं आता
मन जो न हारता है
मन जो न जीतता है
मन जो राजा है
खुद अपने आप का
उसका शारीर से कोई मोह नहीं
वो जो हर दुःख हर सुख,
हर आवाजाही से परे रहता है
नियंत्रण जिसे कदापि मंजूर नहीं
दौड़ते रहना जिसकी आदत है
उलझन सुलझन जो उसके
खिलोने भर है
वोह जो कोई दस्तूर नहीं मानता
वो जो किसी परंपरा
किसी समाज की हद
सबसे जुदा रहता है
मन की गुलामी करवाना
जिसे सर्वदा भाता है
हम उसी मन को काबू करने की सोच
में जो न जाने क्या क्या करते है
पर जरा सोचा कभी
की फिर भी ये मुमकिन नहीं हुआ आज तक
क्योंकि मन नियंत्रण के लिए नहीं
मन चिंतन के लिए बना है
और ये सिर्फ उनका ही हुआ है
जिनका जीवन
चिंतन का गोता लगाने की कला को सीख लिया है
............................ रवि कवि
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