जीने की कला

तजुर्बा ऐ जिन्दगी बहुत हो चला
अभी तक पर कुछ न मिला
जहाँ से चला था
फिर वहीँ आ हुआ खडा
ये में चल रहा था
या ज़मी
जो भी हो मगर
पहुंचा सफ़र कहीं नहीं
सुबह कहीं शुरू होकर
शाम तक जिन्दगी
रोज़ आती रही जाती रही
कुछ वक़्त
बचपन का बीता
दोस्त संगी मस्ती
सब के बीच कहीं गुजरता
न जाने कब बड़ा हुआ
इधर उधर जाऊ किधर
की उधेड़बुन
कहीं होता हुआ
बस चुन लिया एक रास्ता
कॉलेज के दिन
या कहूँ बहारों के पल
काश ! यह लम्हे न होते कभी भी ख़तम
मगर वक़्त के साथ
न चाहते हुए बदलना पड़ता है
और जीने की लगन के लिए
सब कुछ सहना पड़ता है
इसी मोड़ पर
जिसे जवानी कहा जाता है
मोहब्बत से भी सामना
बस हो जाता है
कल की न कुछ पता होते हुए भी
प्यार की कशिश में कुछ कीमती वक़्त
फिसल जाता है
सफलता के लिए नहीं
खुद के वजूद ले लिए
दर्द ऐ मोहब्बत निभाना पड़ता है
वो बात अलग है
बाद में बे पनाह खामियाजा भी चुकाना पड़ता है
लेकिन सब ले बाबजूद यह भी
जरुरी कर्म है
आज की पीढी ले लिए
इसलिए इस फेर में पड़ना
समझ लीजिये मजबूरी होता है
खेर इसके बाद की जिन्दगी में
जब हकीकत से सामना होता है
बड़ा मुस्किल दौर वो होता है
अछी नौकरी की तड़प
दिल में लिए
ये न जाने कहा कहा मारा मारा फिरता है
धुप धुल धक्का
सब कुछ खाने के बाद भी
शायद कुछ नसीब वालों को ही ये सुकून मिलता है
पेट की खातिर फिर जो मिले
सब सही लगता है
पर जवानी नाम का दिया
अब तक अपनी चरम पर आ चुका होता है
समाज, घर, दोस्त और थोडा बहुत खुद का मन
सब मिलके फिर शादी की तरफ इशारा करना
शुरू कर देते है
फिर एक नयी उलझन
की अछी नौकरी के लिए तो जीवन पड़ा है
मगर अछी बीवी तो लिए
शायद एक ही मौका होता है
इसलिए
बदल बदल कर
खूब ठोक पीट कर
हर तरफ से मालूमात करके
शादी करने की कोशिस शुरू हो जाती है
पर आज की रंग बदलती पल पल दुनिया में
ऐसा जीवन साथी भला कहीं मिल सकता है
पर आदमी कोशिश करने में क्या जाता है
कहकर कोशिश करता है
और इस कोशिश में कुंवारापन
जरुरत से ज्यादा लम्बा हो जाता है
इसलिए सलाह है उन सब कुंवारों को
की जिन्दगी में दरअसल
अच्छा कुछ नहीं मिलता
बल्कि जो भी मिलता है
उसको ही अच्छा बनाया जाता है
और येही जीने की कला कहलाता है
अगर यकीं न हो तो
पलट कर कुछ पन्ने अपनी अपनी जिन्दगी के तो देखो
तो शायद मेहमूस होगा
की अच्छा कभी कुछ किसी को नहीं मिलता
और भी अच्छा हुआ
वो सब खुद का बनाया हुआ ही था................. रवि कवि

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