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Showing posts from August, 2009

मत ओढो खामोशी को

मत ओढो खामोशी को डर कर जीने से क्या होगा जो अब तक कुछ लुटा है तो कल तक सब कुछ लुट जायेगा ऐसे ही चुपचाप सहे तो सर्वस्य बिक जायेगा देश की माटी लहुलुहान और सपने आंसू बन जायेंगे चीख दफ़न गर हो जाये तो ना इंसाफी सर उठाती है जिन्दगी सडी गली लाश बन जाती है क्या ये ही जीने का मकसद हमारा है जहा हमारा कुछ भी न हो सब पर हक पापी पाखान्द्दियों का हो ये कब तक और चलता रहेगा मजदूर मजलूम सिर्फ रोये और हक छिनने वाला ऐश करे ये जबरनी कानून कब तक हमको डसेगा गरीब के बच्चे भूख से बिलखे बासी खाना या कुछ भी न मिलना तन ढकने को कपड़ो को तरसे घर के नाम पर टपकती झोपडी गर्मी सर्दी हर मौसम जहा अँधेरा हो ऐसे जीवन को जीना अब सेहन मत करो नहीं - नहीं अब और सहना नहीं डरों मत उठो आगे बढो हिम्मत से जुटों और बदल डालो इस तंत्र को जहा गरीबो की मेहनत पर अमीर मजे उडाते हो और उनके हक मार मार कर अपने महल बनाते हो मत घबराओ देख कर उनकी ताकत को मत भूलो सच्चाई की अपनी भी ताकत को चले चले सब मिलके अब अधिकार अपने पाने को और दिखा दे की गरीब होना महज़ संयोग है कोई पाप या गुनाह नहीं और कोई गरीबी पर राज़ करे और, ये अब हमे कतई मंजूर नहीं..

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इतना ही है पता

जिन्दगी में तुझे समझाता रहा जलता रहा, सुलग सुलग जीता रहा सदा कितनी है तुझ में बाजीगरी देखता रहा जीने की कोशिश जी जी के करता रहा ना कभी पाया तुझे ना कभी जाना बस आरजू लिए जीने की जिन्दगी जिया बड़ी ही खामोश है तेरी हर अदा जीते है जिन्दगी सब तेरे नाम के सिवा कुछ और नहीं पता ढूढ़ता हर कोई पर पता कभी नहीं ऐ जिन्दगी तुझे क्या हम कहे अभी जीना है बस तेरे सहारे सदा इतना ही है पता.......... रवि कवि

चले तो बहुत

चले तो बहुत, पहुंचे कही नहीं, किया बहुत, पाया कुछ नहीं, जिन्दगी झोख कर भी पूरी, सुख चैन कभी मिला नहीं, अब संभल जाने का वक़्त है, जिन्दगी फिर नहीं मिलेगी, कुछ कर गुजरने की ठान अब, काम ऐसा कर, की जीवन हो सफल मेरा.... रवि कवि"

शिक्षित तो हुए

शिक्षित तो हुए, पर खुद को कभी बदल न पाए, सिर्फ दुसरो को गलत साबित करने, नीचा दिखाने, कमजोर बताने, में ही लगे रहे बड़प्पन कभी दिखा न पाए, शिक्षा तो पा ली, लेकिन जीवन में इसे उतार न पाए, खुद की ताकत के अंहकार के आगे, इस अनमोल जीवन का मर्म, कभी समझ ना पाए .......रवि कवि -

इतनी ऊँची उड़ान

किस चीज़ का गुरुर है तुझको क्या ऐसा है तेरे पास जिसके आगे तुने किसी को कभी कुछ न समझा तू ज्ञानी है, बड़ा पैसे वाला है बहुत बड़ा कारोबारी है या कोई बड़ा अफसर या नेता , अभिनेता है तेरे सामने - बड़े नौकर चाकर, कर्मचारिओं की लम्बी कतार है गाडियाँ है, बंगले है, मोटा बैंक बैलेंस है हीरे जवाहरात है पॉवर भी है और शोहरत भी वोह सा कुछ है तेरे पास जिसके आने के बाद अक्सर आदमी खुद पर काबू कम ही रख पाता है बहुत विरला ही कोई इंसान, इंसान रह पाता है वर्ना बदल जाता है इंसान भी और नजरिया भी खुदके आगे खुद के अंहकार के आगे सब दिखना बंद हो जाता है वो सिर्फ वो रह जाता है जिसको वो यानि परमात्मा कभी नहीं मिल पाता है इसलिए नहीं की उसने ये सब पा लिया है बल्कि इसलिए की सब कुछ पाकर वो इतना खोकला हो जाता है जिसमे इंसानियत और समानता सब बेमानी हो जाती है घमंड और बेईमानी लालच और दूसरो के हक तक लीलने में उसको कोई परेशानी नहीं होती है इसलिए सब कुछ होते हुए भी ऐसा शख्स उस परिंदे जैसा होता है जिसके पर उसे इतनी ऊँची उड़ान पर ले जाते है जहाँ से नीचे हर चीज़ बहुत छोटी नज़र आती है पर ऐसा नहीं की हर परिंदा जो ऊंचाई पर जाता हो

बस कर्म किये जा

बदलाव आएगा, जरुर आएगा, तू बस खुद पर और खुदा पर यकीं रख, ईमानदारी से तप कर, फिर देख दुनिया को मानते हुए लोहा तेरी कर्म तपस्या का तेरा भाग्य तेरा कर्म होगा न की दूसरो का फैसला, बस कर्म किये जा और जिए जा ..........रवि कवि

जीवन का सुख

घाव बड़ा था इसलिए जख्म हरा ही है अभी दर्द और टीस रहेगी बरक़रार यूँ ही कुछ और दिन अभी वक़्त खुद इलाज़ होता है इसलिए सब्र रखना पड़ता है गूंगे बहरे लोगो के आगे रोने से कभी कुछ नहीं मिलता है कितना भी बड़ा हो दर्द लेकिन चुपचाप सहना ही ठीक रहता है चीख भले ही दिल से निकले पर बाहर तक न आ पाए येही यतन मन को करना है समझेगा भला कोई क्या किसीको सब के सब ऐसे ही जीवन के आदी है वक़्त नहीं फुर्सत नहीं न ही पल दो पल का सुकून है सब दौड़ रहे इस जीवन में इतना ही मंतव्य है अपने दर्द से ज्यादा पीडा सामने वाले के दामन में है इसलिए खामोश सहो सब इसमें ही जीवन का सुख है............. रवि कवि

जीवन का सुख

घाव बड़ा था इसलिए जख्म हरा ही है अभी दर्द और टीस रहेगी बरक़रार यूँ ही कुछ और दिन अभी वक़्त खुद इलाज़ होता है इसलिए सब्र रखना पड़ता है गूंगे बहरे लोगो के आगे रोने से कभी कुछ नहीं मिलता है कितना भी बड़ा हो दर्द लेकिन चुपचाप सहना ही ठीक रहता है चीख भले ही दिल से निकले पर बाहर तक न आ पाए येही यतन मन को करना है समझेगा भला कोई क्या किसीको सब के सब ऐसे ही जीवन के आदी है वक़्त नहीं फुर्सत नहीं न ही पल दो पल का सुकून है सब दौड़ रहे इस जीवन में इतना ही मंतव्य है अपने दर्द से ज्यादा पीडा सामने वाले के दामन में है इसलिए खामोश सहो सब इसमें ही जीवन का सुख है............. रवि कवि

हार जीत में केवल वक़्त का फर्क होता है

हार जीत में केवल वक़्त का फर्क होता है प्यादे से पिट जाये वजीर कभी कभी ऐसा भी होता है बहुत नामुमकिन अक्सर मुमकिन और बहुत मुमकिन अक्सर नामुमकिन होते भी बहुत देखा है जिन्दगी एक सांप सीढ़ी के खेल से ज्यादा और क्या होगी? कभी जीती हुई बाज़ी कब पल में हाथ से निकल जाये कोई बड़ी बात नहीं होती सपने कब बनते बनते टूट कर बिखर जाये ये होना भी बड़ा आम मिलता है अपने, अपने सिर्फ दीखते है पर होते नहीं कब दगा दे जाये ये अपने चेहरे इसके लिए भी मन हमेशा तैयार रखना पड़ता है लोगो की भीड़ में दुश्मन जैसा कोई न मिले , दिखे दरअसल जो दोस्त होता है उसी चेहरे के पीछे ये दुश्मन शख्स छिपा रहता है लाख कर लो कोशिश इमानदार अच्छा इंसान बनकर जीने की पर स्वार्थ ही जीत जाता है हर बार हर लड़ाई में दब कर रह जाती है अक्सर सच्चाई झूट की चीख में हर नारा जो बुलंद होता है कागजो, दीवारों, किताबो और सभाओ में कही नहीं दीखता उसका रंग जिन्दगी की राहो में बस मुखोटे लिए जीना मानो आज के आदमी की जरुरत बन गयी है हर आदमी से काम निकाल कर भूल जाना फितरत बन गयी है शायद ये पैसे की होड़ है जिसके आगे हर सम्बन्ध हर सच्चाई बेबस है मजबूर है लाचार है