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Showing posts from 2010

अजनबी का अहसास.........................

दौड़ती कार में जो तुने ज्यों ही खुली जुल्फों में अपने हाथ की मखमली उंगलिया उकेरी तो मेरे बदन में सरसराहट आ फैली सुध - बुध कुछ पल को मेरी झिलमिला सी गयी ज्यों ही होश संभाला सामने सड़क का दोराहा था क्या पता था सिर्फ इतना ही इस अजनबी का अहसास साथ जायेगा और पहेली के इस खेल का जबाब पहेली ही रह जायेगा ............ रवि कवि

तुझे छूना चाहता हूँ

मैं तुझे छूना चाहता हूँ तेरा अहसास पाना चाहता हूँ चुमते हुए तेरे ठन्डे माथे को शरारती आँखों के रास्ते दिल की गहराइयों में प्रेम के गोते लगाते हुए तेरे हुस्न की तपिश में जल जाना चाहता हूँ जानना चाहता हूँ समझना चाहता हूँ मैं अपने दिल के अरमान तुझ में बयां कर देना चाहता हूँ तुझे इस तरह पाना चाहता हूँ कि तुझ में समां जाना चाहता हूँ .............. रवि कवि

प्रेम रंग से तर बतर हो गया है

कुछ इतने करीब सिर्फ हम तुम नहीं रिश्ते भी हो गए दोनों जहाँ दो से एक हो गए कोई फासला नहीं दरम्यान अब तेरे मेरे जिन्दगी का एक एक रंग तेरी मेरी साँसों में घुल कर प्रेम रंग से तर बतर हो गया है तू और मैं हम और यह हम नयी नीव की तरफ बढ़ चला है ............ रवि कवि

मंगल मंगल सब रहे सदा

दियें जलाये, उत्सव मनाये दिवाली है आई प्रेम और ख़ुशी के साथ नयी उमंग नयी उर्जा संग है लायी बरसती रहेगी सर्वदा माँ लक्ष्मी की कृपा सन्देश है ये लायी मंगल मंगल सब रहे सदा है आज दिवाली कहने आई ..................... रवि कवि

चाल चरित्र और चेहरे पर सवाल उठाने वालों

चाल चरित्र और चेहरा यक़ीनन पहचान है हमारी नापाक इरादे कुछ भी करले नहीं मिटेगी हरगिज़ हस्ती हमारी हम आसमान से टपके ओले नहीं है बीज है जो जड़ो से उगकर बृक्ष बने है हिंदी है हम, हिन्दू है हम, हिंदुस्तान है हम वसुधैव कुतुम्बुकम की संस्कृति वाली इकलौती पहचान है हम नकली चाल, नकली चरित्र, नकली चेहरों से डरने वाले भी नहीं है हम हम तो इस माटी के कण कण में बिखरी खुशबू है............. दोस्तों जो अपने स्वार्थ के लिए देश के आत्म सम्मान को बेच दे भ्रस्ताचार की ओढ़नी ही जिनका लिबास हो चापलूसी करना ही जिनकी वफादारी का सबूत हो आतंकियों को इज्जत और रास्ट्र प्रेमिओं को तोहमत देना जिनका एकमात्र राजनितिक धरम हो यकीं मानिये.................... ऐसे लोगो से बहुत बेहतर है आप और हम अरे जीने शक हो अपने ही वंशजो के होने पर ऐसे भारत माँ के गद्दार नहीं है कम से कम हम और रही बात हमारी चाल चरित्र और चेहरे पर सवाल उठाने वालों की तो वक़्त बता देगा एक दिन की संस्कृति विहीन, मूल्य विहीन और धरम विहीन होकर महाशक्ति नहीं बना जाता दूसरों के फेंके हुए टुकड़े से स्वाभि मान नहीं स्वाभिमान नहीं जगाया जाता और झोली फैला कर मांग

तक़दीर की सवारी...........

मौके को बना ले, तक़दीर की सवारी हर हार में छिपी है जीत की खुमारी अरे वक़्त इंतज़ार से नहीं बदलता उठानी पड़ती है हर जिम्मेदारी संभल जाओ आज अभी, यह उम्र का तकाजा है वर्ना जिन्दगी की यह रफ़्तार नहीं है तुमसे सँभालने वाली.............. रवि कवि - "मन का विज्ञानी"

मंदिर और मस्जिद के दीवाने

मेरे मन का भगवान तेरे मन का अल्लाह एक दुसरे से कह रहे है आज कि मंदिर और मस्जिद के दीवाने सिर्फ कर रहे है अपनी अपनी बात मन में करके खड़ी दीवार कैसे बचेगी ये अपनी खुबसूरत कायनात नफरत और द्वेष के आगे सिर्फ और सिर्फ बंटवारा मिलता है श्रद्धा नहीं त्रासदी को बल मिलता है और आज का इंसान इसी को धर्म या मजहब समझता है कैसे समझाए इसे क्या करे ऐसा जिन्दगी का मर्म कतई नहीं है जुदा धर्म और जुदा इंसानियत का होना ......................... रवि कवि
सडको पर बीत रही है जिन्दगी महानगरीय लोगो की चोंकिये मत जनाब मैं बात कर रहा हूँ ट्रेफिक जाम में फसने वाले आम लोगो की दिल्ली की तस्वीर तो बदल गयी दावा है सरकारी इश्तहारो का सचमुच बदल गयी है दिल्ली सही है ये दावे !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! क्योंकि सब कुछ बदल गया है आदमी घर और दफ्तर से ज्यादा सड़क पर समय बिता रहा है महानगर में रहता है शायद इसकी सजा पा रहा है ............... रवि कवि

चलते रहो बस चलते रहो.......

कभी जिन्दगी कुछ उलझनों और कुछ शरारतों के बीच चलता हुआ कोई तूफान है कभी जिन्दगी धडकनों और लम्हों के बीच दौड़ती फिरती मुस्कान है कभी जिन्दगी तेरी या कभी मेरी रोज़ रोज़ बदलने वाली पहचान है और येही पहचान जिन्दगी की कहानी है जी ले इसे जैसी भी है जिन्दगी बस चलते रहने का नाम है चलते रहो बस चलते रहो.............................रवि कवि

चलते रहो बस चलते रहो.......

कभी जिन्दगी कुछ उलझनों और कुछ शरारतों के बीच चलता हुआ कोई तूफान है कभी जिन्दगी धडकनों और लम्हों के बीच दौड़ती फिरती मुस्कान है कभी जिन्दगी तेरी या कभी मेरी रोज़ रोज़ बदलने वाली पहचान है और येही पहचान जिन्दगी की कहानी है जी ले इसे जैसी भी है जिन्दगी बस चलते रहने का नाम है चलते रहो बस चलते रहो.............................रवि कवि

काश ऐसा ही हो

मेरा बचपन उजड़ा है कोई जिम्मेदार में बना दी गयी बेसहारा लाचार किसे कहूँ कसूरवार में भी खिलोनों से खेलना चाहती थी पर कर दिया मुझे खिलने से पहले ही शर्मसार क्या कभी मेरा बचपन अब लौट पायेगा ? खुल कर जीने का अधिकार मिल पायेगा ? काश !!!! ये सब मेरा कोई बुरा सपना ho में नींद से जागूं, तो दुनिया में हर कोई मेरा अपना हो !!!!!!!!!!!!! काश ऐसा ही हो काश ऐसा ही हो ....................रवि कवि

ओ मेरे कृष्ण मोहन

मेरी प्रेम की तपस्या मुझे मीरा बना दे मुझे कबीरा बना दे मुझे कृष्ण की राधा बना दे मेरी तड़प को उसकी लगन बना दे जो सिर्फ उस प्रीतम प्यारे कि ओर मुझे ले जाये जिसने शरीर दिया धड़कन दी ये पहचान दी बस मुझे उस बलिहारी का दास बना दे ऐसा मुझे अपने कृष्ण का दीवाना बना दे ओ मेरे कृष्ण मोहन मुझे अपना बना ले ......................... रवि कवि

मोहब्बत नज़र आती है ......

वो क्या समझे दिल की लगी जिसे न हुई हो मोहब्ब्बत कभी ये ऐसी आग है जिगर की जो जितनी जले उतना ही असर दिखाती है जिन्दगी क्या है सचमुच यह बात समझ आती है बेकरारी इस तरह छाती है दिन न रात कोई फिर सिर्फ सिर्फ सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत नज़र आती है जिन्दगी फिर इस तरह मुस्कुराती है गुनगुनाती है मानो................ जैसे रिमझिम बहार में मोरनी नाचती है ऐ मोहब्बत ................. तू किस कदर खूबसूरत है ये मोहबत हो जाये तो बात समझ आती है ........................... रवि कवि

आज के देश की तस्वीर............................

रंग भी है आतंकवादी रास्ट्र धर्म की बात करने वाले भी आतंकी पर देश तोड़ने वाले मानवता के न्रशंश हत्यारे जो बैठे है हमारी जेलों में मेहमान बनके उनको कोई सजा नहीं, बल्कि पनाह मिलती है चंद वोटो के लालच में अपनी अस्मिता को ही पलीता लगाना भी जिन्हें मंजूर है ऐसे मेरे नेता आज के देश की तस्वीर है ................... रवि कवि

आज के भारत का निर्माण ....

एक तरफ मौनी राजा का राज दूसरी और एक युवराज का काज समझ नहीं आ रहा यह कौन सा घाल मेल हो रहा है राजा या युवराज कौन देश चला रहा है गरीब किसान घुट रहा है आत्महत्या कर रहा है हर तरफ महगाई, भ्र्रस्त्ताचार, आतंकवाद शांति जिसके आगे पड़ी है लाचार गरीबो किसानो आदिवासिओं को दे देकर आश्वासन का प्रसाद अल्पसंख्यको को डरा डरा के अपने वोटो को साधने का प्रयास आखिर किस ओर जा रहा है मेरा ये हिंदुस्तान खामोश खामोश खामोश ....................... सुना है अमीरों के आगे नतमस्तक है हर नेता हर सरकार ये ही है आज के भारत का निर्माण ........... रवि कवि .......................

भारत निर्माण............

जिस धरती को किसान अपना खून पसीना देता था जीने के लिए लोगो को भरपूर अन्न देता था सुना है आजकल लूट कर उसकी धरती उद्योगों को दे दी जाती है न माने तो उस धरती पर उसकी लाश बिछा दी जाती है खेत खलियान तो पहले ही शहरीकरण के चलते अपना अस्तित्व खो चुके है पर अब गाँव को वीरान करने की साज़िश का खेल भी चल पड़ा है वाह रे मेरे हिंदुस्तान क्या येही भारत निर्माण हो रहा है ???? ............. रवि कवि

हमारा हिंद महान .....

ऐ देश तेरे इतिहास को प्रणाम वीरों ने दिए तुझ पर बारम्बार नौछावर प्राण तेरी आन बान और शान को सलाम जिसके आगे झुके क्या सिंकंदर क्या मुग़ल क्या गोरे बदनाम हम भी तेरे सम्मान को नहीं होने देंगे कभी कुर्बान तू है मेरा जहान जिस पे नाज़ है हम सबको ऐसा है हमारा हिंद महान .............................. रवि कवि

अजनबियों का तमाशा...........

हम बदले, तुम बदले इतना बदले कि रिश्तों के इतिहास बन गए नये रिश्तों ने दीवार खड़ी कर दी अब कुछ नहीं सिर्फ................. जिन्दगी अब अजनबियों का तमाशा है .................... रवि कवि

कृषि मंत्री है या क्रिकेट मंत्री................................

कृषि मंत्री है या क्रिकेट मंत्री................... कृषि मंत्री के पास कृषि के दशा सुधारने के लिए न तो वक़्त है और न ही कोई सोच है रात दिन बस उन्हें तो क्रिकेट की ही फिक्र है फिर किस लिए वोह मंत्री ऐ कृषि बने बैठे है किसान मर रहा है महंगाई तिल तिल मार रही है और जनाब के पास इन कामो के लिए फुर्सत ही नहीं है कितनी शर्म की बात है लेकिन क्या करे आज की राजनीती बेशर्मी की मिसाल बन गयी है .............. रवि कवि

बहुत हो गया सहन

हो जाओ सब एक सब अब वक़्त है पुकारता लुट गया जो चमन फिर जागने से होगा क्या आ गया है वक़्त अब मिलकर ललकारने का बहुत हो गया सहन अब जुल्म इस सरकार का............... रवि कवि

राजा कौन और जनता मौन ............................

आओ मिलके अब उठे सब देश देता है पुकार अब नहीं तो फिर कब उठोगे गद्दारों ने दी है ललकार बैठे है सत्ता की गद्दी पे भ्रस्ट, पापी और मक्कार यह नहीं सुधरेंगे ऐसे गर रहेंगे हम लोग ऐसे ही चुप चाप देश की अस्मिता दावं पर है भुकमरी बेरोज़गारी और मंहगाई सब दिनोदिन बढ़ रहे है गद्दार नेता देश को खोखला कर रहे है घोटाले करने वालेमौज और इमानदार लोग घुट घुट मर रहे है विकास के नाम पर विनाश लीला चल रही है 'राजा कौन और जनता मौन गर ऐसे ही सब चलता रहेगा तो देश कब तक ऐसे चलेगा फिर भी रहे खामोश तो इतिहास हमें कभीमाफ़ नहीं करेगा ................ रवि कवि

भारत निर्माण जारी है .................

गरीबी मिटाने का वादा षड़यंत्र गरीब हटाओ चल रहा है खेलों के नाम पर गरीबों का खून पसीना लुट रहा है मंहगाई बढती ही जाये इसका पूरा इन्तेजाम परदे के पीछे से चल रहा है कृषि से ज्यादा क्रिकेट का ध्यान सरकार को रह रहा है जो जिस पद पर है वोह उस पद पर सिर्फ नाम के लिए बैठा है सचमुच हिंदुस्तान में लोकतंत्र के नाम पर फेमिली सर्कस चल रहा है जिसमे जनता बन्दर है या भालू है और तमाशा ऐ सरकार जारी है .......... जारी है ............ जारी है........... और आम आदमी की जिन्दगी का रोना भी सिर्फ एक खेल बन गया है सुनते है देश में अनाज के साथ साथ जनता में एकता का भी टोटा पड़ गया है इसीलिए सरकार निश्चिन्त होकर चल रही है और आम आदमी को निचोड़ कर भारत निर्माण कर रही है................................... रवि कवि

आम आदमी मतलब...................

आम आदमी मतलब सब्र का जीता जागता बुत जो सिर्फ उम्मीद और झूठे वादों के लिए पूरी उम्र गुजार देता है महगाई जिसकी जीवन साथी है टपकती छत या टूटी हुई झोपडी जिसमे पूरी जिन्दगी गुजरती है एक मुट्ठी चावल और बाकी पानी हर रोज जिसकी हांडी में पकते है बच्चे भूखे नंगे रोजगार की आस हर रोज़ नित नयी जुगत जीवन के साथ साथ ता उम्र चलने वाली ऐसी व्यबस्था आम गरीब आदमी के जीवन में ऐसे ही बदस्तूर जारी है ये आम आदमी जो हर खास का जीवन बनाता है हर खास का जीवन सजाता है जो साड़े चार बरस झूटी उम्मीद के दिए जला कर जिन्दगी बसर करता है और फिर कुछ शराब की बूंदों सस्ती सी साड़ी या १००, २०० रूपये में अपना वोट बेचकर फिर से गरीबी का लाइसेंस पा लेता है यूँ भी गरीब रहने में हर खास का फायदा ही है इसलिए गरीब हमेंशा ही गरीब रहता है और अमीरों की दुनिया में खिलौना बनकर जीता है सरकार जो आम आदमी के नाम पर सत्ता का सुख लेती है लेकिन दुर्भाग्य गरीब की सुध फिर अगले चुनाव तक कभी नहीं लेती है अपना हक अगर गरीब मांगने भी चले जाये तो नसीहत और झूठे आश्वासन जरुर मिल जाते है गाँव तो पहले ही रोजगार की तंगी से दिनोदिन अनाथ होते चले जा रहे है ल

आम आदमी की येही असली पहचान है

जितना भी दीजिये दे दीजिये दर्द सह जायेंगे हर ग़म क्योंकि हमको दर्द में जीने की आदत हो गयी है दो घूंट बस मुफ्त की शराब या सस्ती सी साडी ही सही या जूठी आस के कुछ झूठे वायदे आम आदमी से कीजिये जनाब और फिर ५ साल का लिए ले जाइये हमसे सत्ता का अधिकार कितना सस्ता सौदा है ये जो हर बार बार हो जाता है ४ साल तक रुलाना फिर पांचवे वर्ष में कुछ झूठे आश्वासन और झूठे सपने कुछ लोलीपोप और फिर से नेता जी की हो जाती मौज ही मौज गरीबी कहाँ कम हुई बेरोजगारी कहाँ कम हुई महगाई कहाँ कम हुई झोपडी मकान आजतक नहीं हुई आज भी एक मुट्ठी चावल और पूरी हांडी में पानी भर भर कर ही करोडो परिवार्रों का काम चल रहा है बच्चे आज भी स्कूल नहीं जा रहे और जो जा रहे है वो कुछ भी नहीं पा रहे गाँव रोजगार की आस में पहले ही अनाथ हो चुके है शहर झुग्गी झोपडी से भड़े जा रहे है सुना है देश की राजधानी में आजकल बहुत विकास हो रहा है ११ दिनों के लिए विदेशी मेहमानों को हजारो करोड़ लगाके खुश किया जायेगा मेट्रो, फ़ीलाइओवेर, फूट ओवर ब्रिज , चमकती रोड मखमली फूटपाथ, रंग बिरंगी बत्ती, महंगी बस और भी न

प्रार्थना !!!!!!!!!!!!

हे ! जगदीश्वर, सबके नाथ कर दो जीवन का कल्याण दया धर्म से जीना आवे दुखियों को हम गले लगावे नाम का सुमिरन करे तुम्हारा ऐसा जीवन बने हमारा सदबुद्धि की दौलत दे दो भक्ति रूपी शक्ति दे दो पुण्य कर्म में लगन लगा दो जीवन नैय्या पार लगा दो धैर्य शांति का मार्ग दिखाओ मानवता का ज्ञान सिखाओ जुल्मो से लड़ने की शक्ति दो दिव्य प्रकाश मन में बिखराओ हे ! दया के तुम अवतार ऐसे जीवन भरो हमारा हर ओर हो रूप तुम्हारा हम अभिमानी न बन जाये बस दास तुम्हारे हम कहलाये इतना सा कर दो उध्हार पूर्ण समर्पित हो चरणों में बस तर दो नाथ तुम जीवन रूपी संसार !!!!!!!!!!!!!!!!!! रवि कवि