ओ मेरी अनुगामिनी
सुख दायिनी मंगल कारिणी
सुमधुर जीवन रचने वाली
बनकर मेरी सहचारिणी
प्रीत के पल्लव संचित करके
घर आँगन मेरे आई हो ! !
रिश्तों में विश्वाश का बंधन
जीवन में प्रेम का स्पंदन
तुम साथ अपने लाई हो !!
सृजनता, सहनशीलता, संस्कार
के गहनों सा सुसज्जित रूप
तुम्हारा यूं ही दमके सर्वदा !!!
ओ मेरी अनुगामिनी
है स्वागत के द्वार खुले
तुम्हारे अभिनन्दन में
तुम इसमे प्रवेश करो.........रवि कवि
सुमधुर जीवन रचने वाली
बनकर मेरी सहचारिणी
प्रीत के पल्लव संचित करके
घर आँगन मेरे आई हो ! !
रिश्तों में विश्वाश का बंधन
जीवन में प्रेम का स्पंदन
तुम साथ अपने लाई हो !!
सृजनता, सहनशीलता, संस्कार
के गहनों सा सुसज्जित रूप
तुम्हारा यूं ही दमके सर्वदा !!!
ओ मेरी अनुगामिनी
है स्वागत के द्वार खुले
तुम्हारे अभिनन्दन में
तुम इसमे प्रवेश करो.........रवि कवि
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