Posts

Showing posts from July, 2011

मेरी मजबूरी है

हमारा राजा .. राजा तो है मगर उसे कुछ नहीं मालूम होता बस हर घटना के बाद मासूमियत भरा चेहरा सजा के कुछ नहीं मालूम था मुझे या मेरी मजबूरी है रटा रटाया गाना सुना देता है अरे ... येस मैडम ... येस मैडम सिर्फ एक शब्द ही जिसकी डिक्सनरी में शुरू से लेकर आखिर तक छपा है वोह राजा काहे का राजा है लेकिन .... सच यह है कि कोई उसे बुरी तरह यूज कर रहा है और जानता तो वोह भी है सब कुछ कि गुनाह तो है जो वोह कर रहा है ...........रवि कवि

दो साल का रिचार्ज (बहुमत) बाकि है

कभी मजहब के नाम पर वोट की कमाई कभी मजहब की करके दुहाई बंटवारे की करना बुबाई क्या इन सबको ही करना सरकार समझती है देश की भलाई तो लानत है धिक्कार है शहीदों के खून का तिरस्कार है मगर अभी दो साल का रिचार्ज (बहुमत) बाकि है मेरे दोस्त इसलिए इनको कुछ भी कहना सुनना बेकार है ................ रवि कवि

भूख से बड़ी तेरे माँ बाप की उम्मीद है......

रात भर बच्चा भूख से रोता बिलखता रहा माँ बाप दिलासे से उसको समझाते रहे की बेटा रात कट जाने दे सुबह को आने दे कुछ बात जरुर बन जाएगी बस तू तब तक सब्र कर जानता हूँ की भूख असहनीय दर्द है मगर अभी तेरे माँ बाप के पास कुछ नहीं ये भी सच है उम्मीद के सहारे हम जिन्दा है और तू ही तो हमारी उम्मीद है चुप हो जा बेटा तेरी भूख से बड़ी तेरे माँ बाप की उम्मीद है.................. रवि कवि

तुझ संग प्रीत लगाईं है ..

दिल ही दिल में बात चली है साँसों ने ली अंगड़ाई है सागर कि लहरों सी तू शायद मुझ में ही कहीं समाई है पहनेगी तू कभी मेरी ही बाँहों का हार येही मुराद लेके मन में तुझ संग प्रीत लगाईं है .............. रवि कवि

आज वक़्त कितना बदल गया है अब...........

धमाके जो पहले रोंगटे खड़े देते थे दहशत से सारा माहौल भर देते थे क्या व्यबस्था क्या जनता सब के सब एक साथ खड़े होकर उस नाजुक वक़्त को संभाल लेते थे दर्द में हमदर्द हुआ करते थे पर आज वक़्त कितना बदल गया है अब अब व्यबस्था धमाको के साथ जीने की आदत डाल लेने का मंत्र सिखा रही है और जनता भी हर धमको के बाद केंडल मार्च लेके निकल पड़ती है सबकी जिम्मेवारी पूरी हो गयी और धमाके की कहानी खतम जिन्दगी जैसी थी फिर शुरू हो गयी............. रवि कवि

गरीबी ख़तम नहीं होती नारों से...................

गरीबी ख़तम नहीं होती नारों से मंहगाई नहीं रूकती कभी दावों से आतंक नहीं मिटता सिर्फ दिखावे से भय नहीं जाता कमजोर इरादों से भूख नहीं शांत होती जी डी पी के बढ़ने से और किसान नहीं मरने कम होते सिर्फ क़र्ज़ माफ़ करने से कदापि भारत निर्माण नहीं हो सकता टी वी रेडिओं में विज्ञापन से जख्म नहीं भर जाते सिर्फ आम आदमी के नाम पर वादों से मंत्री बदलने से व्यवस्था भला कहा बदलती है अरे जिस मुल्क का राजा भीष्म कि तरह भारत के चीत्कार को देखता रहे और कहे मेरी मजबूरी है उस देश कि प्रजा को कोई भी आस रहे ... तो समझना ये खुद को खुद की झूटी तसल्ली है ..................... रवि कवि

आओ चले फिर गाँव की ओर.................

आओ चले फिर गाँव की ओर और जाने गाँव के लोगो के दर्द लगाये मरहम उनके घाव पर जो लगे है अंधाधुंध शेहरीकरण के नाम से उपजाऊ भूमि जो लूटी जा रही है चंद हरे नोटों के दाम पर और बनाये जा रहे है महल - मॉल अमीरों की शान पर ............ रवि कवि