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Showing posts from July, 2009

शिक्षा हो भय से परे......................

शिक्षा हो भय से परे बच्चे खुद अपना भविष्य तय करें सही मार्गदर्शन उन्हें मिले शहर हो या फिर गाँव भेदभाव कही न रहे सबको बराबर मौके और प्रेरणा मिले हर स्कूल प्रगति का मार्ग बने न की डर की वह दूकान चले घर में प्रेम का माहौल बने बच्चों को उनके मुताविक सम्मान मिले हर बच्चें में कुछ अलग होता है इसलिए हर बच्चे की जरुरत को आंकना सबका कर्त्तव्य बनता है बच्चें देश की पहचान होते है आने वाले कल का निर्माण होते है बच्चें कही भी हों किसी कभी हों किसी भी हाल में जीते हो वो हमारी अमोल धरोहर होते है इसलिए उनको सहेजकर रखना हम सबका कर्त्तव्य है बच्चों को डर की नहीं हमारे सिर्फ प्यार की जरुरत है इनका बचपन संवरे इनमे ही हमारा कल जीवित है .............. रवि कवि

शिक्षा हो भय से परे......................

शिक्षा हो भय से परे बच्चे खुद अपना भविष्य तय करें सही मार्गदर्शन उन्हें मिले शहर हो या फिर गाँव भेदभाव कही न रहे सबको बराबर मौके और प्रेरणा मिले हर स्कूल प्रगति का मार्ग बने न की डर की वह दूकान चले घर में प्रेम का माहौल बने बच्चों को उनके मुताविक सम्मान मिले हर बच्चें में कुछ अलग होता है इसलिए हर बच्चे की जरुरत को आंकना सबका कर्त्तव्य बनता है बच्चें देश की पहचान होते है आने वाले कल का निर्माण होते है बच्चें कही भी हों किसी कभी हों किसी भी हाल में जीते हो वो हमारी अमोल धरोहर होते है इसलिए उनको सहेजकर रखना हम सबका कर्त्तव्य है बच्चों को डर की नहीं हमारे सिर्फ प्यार की जरुरत है इनका बचपन संवरे इनमे ही हमारा कल जीवित है .............. रवि कवि

ये भी कोई मैंने जिन्दगी जी................

मैंने जीवन ऐसे बिताया जैसे कोई जानवर चारपाया हर चीज़ की मुझे जिद रही ऐसी जैसे सब कुछ मेरे लिए ही बना हो मैंने कभी किसी की बात न मानी क्योंकि मुझे आदत थी सिर्फ अपनी तरह जीने की जिस तरफ दिल ने चाहा उस और ही चल भागा न दिन की सोची न रात की न घर की सोची न घरवालों की न अच्छे की सोची न बुरे की बस करता चला गया बढ़ता चला गया यूँ तो अकेला ही चला था मगर कुछ बिन चाहे दोस्तों की कतार में शामिल हो गया कब हुआ कैसे हुआ ये तो याद नहीं पर इन अजनबी रिश्तों के आने से मेरे अपने सभी अपने रिश्ते जरुर छूटते चले गए और जिनकी मैंने परवाह भी कभी की हो ऐसा भी कुछ हुआ नहीं लगता था जैसे की मेरी जिन्दगी बदल गयी सिगरेट, तम्बाकू, शराब सब मेरी मानो जिन्दगी बन गयीं लत कब आदत बनी आदत कब लाचारी हुई लाचारी कब बेचारगी लगने लगी बेचारगी कब जिन्दगी लील गयी होश में रहता कभी तो मालूम भी होता लाख समझाना मुझे मेरे अपनों का बार बार इलाज़ करवाना मेर रोगों का घर से ज्यादा अस्पताल में रहना इन सबके बाबजूद मुझे रत्ती भर अहसास न होना की मैं क्या खो रहा हूँ इस अनमोल जीवन में सब मेरा लुट गया उस नशे की काल कोठरी में जो मुझे सबसे प्रिये रही स

बेटे का दिया कम्बल.......................

एकांत घर के किसी कोने में खाली लिफाफे सा, कूडे सा बिखरा हर आहट पर पथराई आँखों से टूटती उम्मीद लिए सहारे के लिए लाठी ढूंढ़ता और फिर लडखडाते क़दमों से उठने की कोशिश करता ये शख्स हर रोज़ यूहीं नजर आता है मोहल्ले के पुराने लोग कहते है कि कभी बड़े सरकारी अफसर हुआ करते थे बड़ा रौब था, खुद इज्ज़त थी पैसा भी बेहिसाब कमाया अपने बच्चों को खुद अच्छा पढाया लेकिन ये सब बातें सुनकर कुछ यकीं सा नहीं होता कि ये वोही शख्स हो सकता है चेहरे पर अनगिनत झुर्रिया एकदम शिथिल जर्जर शरीर कमजोर आँखे लडखडाती जुबान हर किसी से सहारे की आस लिए उम्र शायद 65 से ज्यादा नहीं लगती पर इतना बेबस इतना मजबूर आश्चर्य है - कितना बेचारा है लेकिन ये कहानी केवल उस शख्स भर की नहीं बल्कि आज लगभग हर बुजुर्ग की होती जा रही है जो अपने ही घर में पराया है अपने बच्चे भी जिसे एक नजर उठा कर नहीं देखते जो खुद का इलाज़ - खुद ही करता रहता है और मौत से पहले - बार बार जीता मरता है ये आज के वर्तमान युग की बेहद कड़वी सच्चाई है जहाँ अब बूढे असहाए माँ बाप औलाद के होते हुए भी पल पल तिल तिल घुट घुट कर जीते है झूटी उम्मीद में बुढापा काटते है घर होते

पैसे की नींव पर - इलेक्ट्रोनिक मीडिया

देख झगड़ते दो बन्दर बिल्ली ने तिकड़म लगाईं बना के खुद को ही जज खा गयी सबकी मलाई ये घटना कोई किस्सा नहीं है है एकदम सच्ची बात बिल्ली से ही प्रेरणा पाके आज की इलेक्ट्रोनिक मीडिया (व्यापार) अस्तित्व में आई है नाम खबर है पर भर भरके मसाला बाँट रहे है यह सब जग को चिंगारी को आग बना के डरा रहे है यह सबको मामूली से मामूली घटना होती है बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ खुद को बनाके उपदेशी देखते है सबमे खोट बाल की खाल निकाल कर कर देते है सबको गंजा - नंगा टी आर पी बढाने के चक्कर में खुद ही रचते है शिकंजा ( स्टिंग ऑपरेशन) १०० में से ९० कार्यक्रम प्रायोजित ये है इनका धंधा पंडितो पाखंडियो को रात दिन गाली बकना फिर सुबह सुबह तंत्र मंत्र , राशिफल, वास्तु न जाने क्या क्या फैला रखा है फालतू का गोरख धंधा लाइव कवरेज़ इनका प्रिये शौक है कोई आग लगाये खुद को, या आतंकी हमला करे बढा चढा कर पेश ये हर खबर करे सबसे पहले खबर दिखाने की हौड सी रहती है इनमे बिना सोचे समझे, परखे बस परोस देते है खुद ही ये जज है और खुद ही ये कानून है मीडिया ट्रायल करना आजकल बड़ा आम है सच सामने आने से पहले ही गुनहगार शरीफ और शरीफ को गुनाहगार बना देते ह

पैसे की नींव पर इलेक्ट्रोनिक मीडिया.........................

देख झगड़ते दो बन्दर बिल्ली ने तिकड़म लगाईं बना के खुद को ही जज खा गयी सबकी मलाई ये घटना कोई किस्सा नहीं है है एकदम सच्ची बात बिल्ली से ही प्रेरणा पाके आज की इलेक्ट्रोनिक मीडिया (व्यापार) अस्तित्व में आई है नाम खबर है पर भर भरके मसाला बाँट रहे है यह सब जग को चिंगारी को आग बना के डरा रहे है यह सबको मामूली से मामूली घटना होती है बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ खुद को बनाके उपदेशी देखते है सबमे खोट बाल की खाल निकाल कर कर देते है सबको गंजा - नंगा टी आर पी बढाने के चक्कर में खुद ही रचते है शिकंजा ( स्टिंग ऑपरेशन) १०० में से ९० कार्यक्रम प्रायोजित ये है इनका धंधा पंडितो पाखंडियो को रात दिन गाली बकना फिर सुबह सुबह तंत्र मंत्र , राशिफल, वास्तु न जाने क्या क्या फैला रखा है फालतू का गोरख धंधा लाइव कवरेज़ इनका प्रिये शौक है कोई आग लगाये खुद को, या आतंकी हमला करे बढा चढा कर पेश ये हर खबर करे सबसे पहले खबर दिखाने की हौड सी रहती है इनमे बिना सोचे समझे, परखे बस परोस देते है खुद ही ये जज है और खुद ही ये कानून है मीडिया ट्रायल करना आजकल बड़ा आम है सच सामने आने से पहले ही गुनहगार शरीफ और शरीफ को गुनाहगार बना देते

रोज़गार की आस

एक गई, दो गई, तीन गई अब तो पुरे दर्ज़न गई बड़ा की कच्चा शिकारी निकला और हर बार खुद ही शिकार बन बैठा मैं किसी ने चमक में फीका बताया तो कोई मुझमे कुछ खास न पाया कोई मुझे लायक ही न समझा और कोई मेरा मोल कौडी बताया पर हर बार बार बार मेरा सपना चूर चूर भरपूर किया मुझे सपने देखने का कोई हक नहीं है इस बात का अहसास बार बार कराया मेरी उमीदों को टूटना हर बार पड़ा में बिखरता रहा, कुम्ह्लता रहा तमाशा बनता रहा लोग बुलाते रहे, लोग नकारते रहे मेरे सपनो की दुनिया उजाड़ते रहे और रोज़गार की आस में बैठा ही रह गया सुखी नजरो से आसमान की और देखते हुए हवाओ के झोखो में उलझे हुए काश ये मेरी किसी रात का कोई बुरा स्वप्न हो जब सुबह हो तो दफ्तर भागने की दौड़ लगी हो ......................... रवि कवि

दुनिया बहुत बदल गयी है........................

वो कोई और लोग होते है जिनकी किस्मत के सितारे बुलंद होते है हम जैसे लोगो के हाथ की लकीरों में सिवाए हाथ मलने के कुछ और नहीं होता या यूँ कहे की किस्मत जैसी कोई चीज़ नसीब में होती ही नहीं सिर्फ खोखली उम्मीद और असफल इन्तेज़ार ही जिन्दगी होती है हर दाँव में हार लिखी रहती है कुछ भी हो जाये धरती बेशक उलट पलट जाये लेकिन जिल्लत की कमाई मिलना तय रहता है दुनिया बहुत बदल गयी है पर कुछ लोग नहीं बदल पाते और आज भी सच्चाई और ईमानदारी की बेतुकी बातें जिन्दगी में सजा कर रखते है जो हकीकत में आज के युग में कबकी दफ़न हो चुकी है वज़न व्यक्तित्व का नहीं नोट का होता है तराजू के किसी भी पलडे में बैठा लीजिये सच्चाई, ईमानदारी को मामूली भी मोलभाव हो सके इतना भी वज़न नहीं होता है ............... रवि कवि