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Showing posts from December, 2009

नव वर्ष २०१० में प्रवेश करे

बीता बरस गया बहुत कुछ बीत गया लम्हे सुनहरे लम्हे खीज भरे लम्हे तन्हाई के लम्हे दर्द रुसवाई के लम्हे प्रेम के लम्हे उम्मीद के लम्हे नाकामी के या लम्हे रहे हो किसी अपने की दी गयी चोट के हर ख्याल का, हर माहौल का इक इक लम्हा सबका बाँध पुलिंदा ले चला गया ये एक और साल हम सबकी जिन्दगी का और लाकर खड़ा कर दिया इक और नए बरस के द्वार पर जहाँ भविष्य के सपने बिखरे है हम सबके बस जोश और साहस से इस द्वार में प्रवेश करने की जरुरत है अतीत से सबक लेते हुए भविष्य की रौशनी से जीवन को उज्जवल करना है हर रंग जीवन का गहना होता है बस थोडा सा सब्र और निश्चयी तप करना है जिन्दगी अपनी मंजिल की ओर नित दिन बढती जाये ऐसा हर कर्म रोज़ करना है परिवार, समाज ओर देश सब हमारे सपनो को साकार होते हुए देखना चाह रहे है कोई कमी न रह जाये इसलिए जज्वा कम नहीं पड़ना चाहिए विजय गीत लिखे हम ऐसा जो पीढियों दर पीढियों आपकी पहचान को रखे जिन्दा आओ हाथ से हाथ अपना जोड़े और इसी संकल्प के साथ अपनी एकता का शंखनाद गुंजाते हुए हम सब एक डोर में पिरोई माला बनकर नव वर्ष २०१० में प्रवेश करे हे मेरे मालिक हमारे आग्रह आप स्वीकार करे............... न

इतनी भी क्या पीजिये...................

इतनी भी क्या पीजिये जो होश ही खुद का ना बचे बीवी बच्चो तक की कोई सुध बाकी ना रहे रात भर भटकते फिरते एक कदम आगे चार कदम पीछे दुसरो से पूछते दिखे खुद अपने ही घर का पता और जब हुई सुबह तो मिले किसी नाले या गटर में दिए हुए मुंह पड़े बेचारी बीवी और बच्चे दर दर खोजते खोजते शर्मिंदगी का दर्द लिए तुम्हारा अस्तित्व विहीन बोझ ढो ढो के जैसे तैसे घर के ठिकाने पर ले आने को मजबूर हो तो लानत है ऐसी जिन्दगी पे जो खुद की ही जिन्दगी पी पी के रोज गल सड़ रही है और अपने साथ ना जाने कितनी ही जिंदगियों को जो तुमसे अपनी जिन्दगी को सवारने की उम्मीद लगाये बैठे है उनको और उनको सपनो को तिल तिल पल पल मार रही है काश तुम समझ पाते कभी उनके सपनो का अर्थ जो तुम्हारे अपने है और तुमसे ही उनके सपने सपने है काश !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!............................... रवि कवि

मन चिंतन के लिए बना है

मन का बहाव बहुत तेज गति से ऐसे बहाता ले जाता है जैसे सागर में उठे ज्वार से लहरों के चक्र वात में सब उथल पुथल हो जाता है मन जो कहीं टिकता नहीं मन जो किसी का हुआ नहीं मन जो हर बंधन से सर्वदा आजाद रहता है मन जिसे काबू में करने को सारा जीवन लग जाता है पर हाथ कुछ नहीं आता मन जो न हारता है मन जो न जीतता है मन जो राजा है खुद अपने आप का उसका शारीर से कोई मोह नहीं वो जो हर दुःख हर सुख, हर आवाजाही से परे रहता है नियंत्रण जिसे कदापि मंजूर नहीं दौड़ते रहना जिसकी आदत है उलझन सुलझन जो उसके खिलोने भर है वोह जो कोई दस्तूर नहीं मानता वो जो किसी परंपरा किसी समाज की हद सबसे जुदा रहता है मन की गुलामी करवाना जिसे सर्वदा भाता है हम उसी मन को काबू करने की सोच में जो न जाने क्या क्या करते है पर जरा सोचा कभी की फिर भी ये मुमकिन नहीं हुआ आज तक क्योंकि मन नियंत्रण के लिए नहीं मन चिंतन के लिए बना है और ये सिर्फ उनका ही हुआ है जिनका जीवन चिंतन का गोता लगाने की कला को सीख लिया है ............................ रवि कवि