आम आदमी का मतलब ............

जिन्दगी में आम आदमी का जीवन जीना
कितना मुश्किल काम होता है
आम आदमी मतलब!!!!!!!!!
जिसके जीवन का मोई मोल नहीं

भीड़ कि भरमार में
एक मामूली अदनान सा, जिसकी कही कोई इज्ज़त नहीं
घर में वो आम आदमी
कम तनख्वा कि किल्लत से जूझता है

पत्नी और बच्चों कि फरमाईशों का नाश्ता
जिसे हर रोज़ मिलता है
और रात के भोजन में
नित नयी घरेलु उलझनों का तड़का लगा मिलता है

ये आम आदमी शहर कि भीड़ में जुड़ता हुआ
जिन्दगी से खेलती बसों में ठूसकर
बिना बात पर अन्य मुसाफिरों से या कन्डक्टर से
गाली गलौज, अपमान सहता हुआ

मन को मसोसता हुआ
दफ्तर हर बार कि तरह लेट पहुँचता हुआ
सुबह कि बेला में भी
शाम वाली थकावट सा थका थका दीखता है

नौकरी प्राइवेट है इसलिए
बॉस कि झिड़की, तनख्वाह से ज्यादा मिलती है
दोपहर को लंच में वो ही रोज़ रोज़ सस्ती सी दाल
और साथ सूखी रोटी खाने में होती है

उस आम आदमी को यह भी याद नहीं रहता
कि कब आखरी बार उसने अपने लिए
नए कपडे या जुते ख़रीदे थे
और हालत ये हो जाती है

कि फैशन कि आड़ में स्टिक्कर लगा लगा कर
पैबंद के जोडो से लबरेज़ या किसी सेल के पुराने कपडे पहनता है
और फटे पुराने जूते को मालिश पोलिश कर कर के जैसे तैसे पहनता
इस आम आदमी के जीवन अहम् हिस्सा है

ये आम आदमी या कहिये बेचारा आम आदमी
जिसका जीवन सिर्फ फिक्र में ही गुजरता है
कोई नहीं बाँट पाता जिसका दर्द
और कोई दर्द समझे भी तो क्यों

यकीं मानिये,
शहर में हर आदमी ही आम आदमी है
जो भीड़ में रहता है
जिसका भीड़ से अलग कोई अस्तित्व ही नहीं

यूँ तो पशुओं और जानवरों को हम बेजुवां कहते है
लेकिन सच तो ये है
आम आदमी से ज्यादा
गूंगा और लाचार कोई और जीव नहीं .............रवि कवि

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