जग ने मुझे बनाया वेश्या....................
जग ने मुझे बनाया वेश्या नोंच नोंच कर खाया है बेच शारीर मैंने अपना घर परिवार चलाया है मेरा जुर्म था बस इतना थी गरीब की मैं इक बेटी पढना लिखना था मुझको जब नहीं मिला कोई भी सुख न रोटी थी न छप्पर था दीन हीन घर का मंजर था पहले धोखे से लुटा तन फिर मजबूरी में बिकने लगा लगा दिया फिर वो तमगा जो जीते जी की मौत था और मैं हालत की मारी बेबस बन गयी इक वेश्या रोज़ ग्राहक आते जाते मेरा तन बना दिया इक बिस्तर क्या जुर्म येही था कि हुई में पैदा इक गरीब के घर सारे सपने लूट के मेरे समाज की सबसे बेहया नारी का ठप्पा लगा दिया यूँ तो सभ्य समाज है दुनिया सारी सारे ही लोग बहुत भले है फिर काहे को मजबूरों का शोषण सब मिल जुलकर करते है शास्त्र बताते है देवता भी नारी का सम्मान करते थे पर आज कि इस दुनिया में देख गरीब की बेबस बेटी कोई मौका पाते ही कलंकित कर देते है क्यों सिर्फ खुद की माँ, बहिन और बेटी ही अपनी दिखती है माँ बहिन बेटी किसी की भी क्यों न हो पर जब उसकी आबरू लुटती है सारी कायनात समझो फिर राक्छासों की बस्ती है जिस समाज में नारी को बेचना अपना शरीर पड़े जो जननी को बिस्तर समझे ऐसे समाज का कोई अस्तित्व नहीं पर ये