मत ओढो खामोशी को

मत ओढो खामोशी को
डर कर जीने से क्या होगा
जो अब तक कुछ लुटा है
तो कल तक सब कुछ लुट जायेगा
ऐसे ही चुपचाप सहे तो
सर्वस्य बिक जायेगा
देश की माटी लहुलुहान
और सपने आंसू बन जायेंगे
चीख दफ़न गर हो जाये
तो ना इंसाफी सर उठाती है
जिन्दगी सडी गली लाश बन जाती है
क्या ये ही जीने का मकसद हमारा है
जहा हमारा कुछ भी न हो
सब पर हक पापी पाखान्द्दियों का हो
ये कब तक और चलता रहेगा
मजदूर मजलूम सिर्फ रोये
और हक छिनने वाला ऐश करे
ये जबरनी कानून कब तक हमको डसेगा
गरीब के बच्चे भूख से बिलखे
बासी खाना या कुछ भी न मिलना
तन ढकने को कपड़ो को तरसे
घर के नाम पर टपकती झोपडी
गर्मी सर्दी हर मौसम
जहा अँधेरा हो
ऐसे जीवन को जीना
अब सेहन मत करो
नहीं - नहीं अब और सहना नहीं
डरों मत उठो आगे बढो
हिम्मत से जुटों
और बदल डालो इस तंत्र को
जहा गरीबो की मेहनत पर
अमीर मजे उडाते हो
और उनके हक मार मार कर
अपने महल बनाते हो
मत घबराओ देख कर उनकी ताकत को
मत भूलो सच्चाई की अपनी भी ताकत को
चले चले सब मिलके अब
अधिकार अपने पाने को
और दिखा दे की गरीब होना महज़ संयोग है
कोई पाप या गुनाह नहीं
और कोई गरीबी पर राज़ करे और,
ये अब हमे कतई मंजूर नहीं.......................... रवि कवि

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