मीडिया और कविता में फर्क....

लोग कुछ भी कहें
कुछ भी समझें
यह हक़ है उनका
पर हर बार जो वो समझें
सही ही हो, ऐसा नहीं होता
यूँ भी अश्लीलता देखने वालों की आँखों में होती है
माँ जब दूध पिलाती है
तो ममता छलकती है
पत्नी जब अपने पति को प्रेम करती है
तो सृष्टि की सृजनता होती है
प्रेम का प्रदर्शन नहीं होना चाहिए
मगर एकांत में मधुर मिलन के
भाव को समझना चाहिए
यौवन जीवन की सच्चाई है
प्रेम जीवन की सचाई है
मन से मन का मिलन जितना ज़रूरी है
उतना ही तनसे तन का मिलन भी ज़रूरी है
अगर बिना कहे बात बनती होती
तो कंडोम को इतने प्रचार की ज़रूरत कभी नहीं होती
फिर भी आज की मीडिया से कहीं ज्यादा
कविता में शरम है
बात कहने के अंदाज़ में बड़ा फर्क है
जो मीडिया रात दिन यह बताता है
की कपड़े के अन्दर नंगा शरीर कैसा दिखता है
वही बात एक कवि शरीर की खूबसूरती को बयान
एकदम निराले अंदाज़ में करता है
रही बात शब्दों में अपना भाव पिरोकर कहना
हर कवि का अपना अंदाज़ होता हैं
बस मन के भाव पहुँचाना ही कवि का संकल्प होता है
व्यापार नहीं करता कवि
न ही बिकाऊ मीडिया है
कविता तो बस इतना चाहती है की
समाज आगे बढ़े और शांत रहे और हर ओर खूबसूरती बिखरे
बस इतना ही उसका मर्म होता है....!

Comments

Unknown said…
bhai raviji aur kaviji...aapne ek kaam toh ye kiya ki umda vishya chuna, doosra kaam aapne ye kiya ki ek rochak kavita ki rachna ki aur teesra kaam ye kiya ki samaj ko ek achha sandesh bhi diya , in teenon kaamon k liye aapko ek hi aadmi se teen hazaar badhaiyan
wish you all the best!
anil said…
हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं । अगर वर्ड वेरीफिकेशन को हटा लें तो टिप्पणी देने में सुविधा होगी ओर आपके ब्लोग पर टिप्पणीयां भी ज्यादा आएंगी क्योंकि अधिकतर टिप्पणीकार word verification देखते ही भाग जाते हैं । word verification हटाने का आसान तरीका यहां है ।
ravi jee,
swaagat hai..alag andaaj mein likhee gai kavitaa pasand
स्वागत है-
रवि-मित्र तुम्हारा,
हिंदी ब्लॉग-जगत में!
waaah khub achchi kosish...
or bhi likhiye..intjaar hai..
deepak."bedil"
समय said…
अब क्या कहूं..
चलो अभी इतना ही..बाकि फिर..

सुस्वागतम्.......
शुभकामनाएं मित्र...
माल बिकाऊ नहीं हो पर इसको और बेहतर बनाने की गुंजाइश रहनी चाहिए...
alka mishra said…
मीडिया मीडिया है ,कविता कविता है ,कविता मिडिया जरूर हो सकती है पर मिडिया कविता नहीं बन सकता

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