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Showing posts from May, 2009

हम सबका मजहब...............

क्यों पलट नहीं देते उस व्यवस्था को जो सबको बाँट देती है समझ कर कोई टुकडा, इंसान को जाती, धर्म में काट देती है हमारे खून में नहीं कोई भेदभाव तो दिलो में ये नफरते क्यों बोई जाती है क्यों कभी हिन्दू, कभी मुस्लिम बनाकर जीवन का चीरहरण होता है खुदा चाहे जन्नत में बसे या भगवन स्वर्ग में इस बात से क्या फर्क पड़ता है जरा खोल मन की आँख तो देख कि राम भी हम है और पैगम्बर भी हम तभी तो मरते को जिन्दगी हम डाक्टर बनकर देते है अज्ञान कि अँधेरे को हम शिक्षक बनकर दूर करते है विकास कि पगडंडियों को हम ही इंजिनियर बनकर चढ़ते है मुश्किल के वक़्त हम ही एक दुसरे के मददगार होते है जब हर इंसान में उस रब कि हिस्सेदारी है तो काहे को इस भेद में पड़ते है यूँ भी नौ महीने से ज्यादा कोई गर्भ में नहीं रहता साँसों का आना जाना सबका एक जैसा है हसना रोना सबमे छिपा है इसलिए इस जाती/धर्म के चक्कर में पड़ना बेहद फिजूल है हम तो सब कठपुतली है बनाने वाला तो कोई और है जिसने हमको जीने का मौका दिया है इसलिए उसके दिए मौके को प्रेम से रहकर जीना मेरा आपका सबका परम कर्त्तव्य है भेदभाव नफरत और संकीर्ण मन कभी भी उस मालिक कि सोच नहीं हो सक

आम आदमी का मतलब ............

जिन्दगी में आम आदमी का जीवन जीना कितना मुश्किल काम होता है आम आदमी मतलब!!!!!!!!! जिसके जीवन का मोई मोल नहीं भीड़ कि भरमार में एक मामूली अदनान सा, जिसकी कही कोई इज्ज़त नहीं घर में वो आम आदमी कम तनख्वा कि किल्लत से जूझता है पत्नी और बच्चों कि फरमाईशों का नाश्ता जिसे हर रोज़ मिलता है और रात के भोजन में नित नयी घरेलु उलझनों का तड़का लगा मिलता है ये आम आदमी शहर कि भीड़ में जुड़ता हुआ जिन्दगी से खेलती बसों में ठूसकर बिना बात पर अन्य मुसाफिरों से या कन्डक्टर से गाली गलौज, अपमान सहता हुआ मन को मसोसता हुआ दफ्तर हर बार कि तरह लेट पहुँचता हुआ सुबह कि बेला में भी शाम वाली थकावट सा थका थका दीखता है नौकरी प्राइवेट है इसलिए बॉस कि झिड़की, तनख्वाह से ज्यादा मिलती है दोपहर को लंच में वो ही रोज़ रोज़ सस्ती सी दाल और साथ सूखी रोटी खाने में होती है उस आम आदमी को यह भी याद नहीं रहता कि कब आखरी बार उसने अपने लिए नए कपडे या जुते ख़रीदे थे और हालत ये हो जाती है कि फैशन कि आड़ में स्टिक्कर लगा लगा कर पैबंद के जोडो से लबरेज़ या किसी सेल के पुराने कपडे पहनता है और फटे पुराने जूते को मालिश पोलिश कर कर के जैसे तैस

रिश्तों की बगावतें !!!!!!!!!!!

मुझे गुरेज नहीं है स्वीकारने में कि तुम मेरे नहीं हो मुझे अहसास है कि तुम अपनी उलझनों से घिरे हो ये रिश्तों कि बगावतें अब यूँ भी बहुत आम हो चली है शहरों में ये बयार बहुत तेजी से चल रही है संयुंक महज एक शब्द रह गया है निज स्वार्थ से युक्त हर जिन्दगी हो चली है साथ रहने कि परंपरा बेमानी हो गयी है प्यार से दो बोल बोलने कि रवायत कहाँ रही है जिसे दोस्त समझो, जिसे अपना समझो सब दिखावे के मुखोटे पहने चले आते है हमदर्द बनकर मिलते है और उल्टा दर्द बढा कर चले जाते है ये ही पहचान अब शहर कि जिन्दगी बन गयी है ख़ास अब कुछ भी नहीं रहा हर चीज़ सौदा बन रही है भीड़ के बोझ तले संस्कृति दबने लगी है सांस लेना भी कभी कभी दूभर लगता है क्या क्या संभाले इस तेज रफ़्तार जिन्दगी में जिसमे संवेदनाये अर्थ हीन हो जाती है अनमोल चीज़ बेमौल और बेमौल चीज़ अनमोल बन जाती है बड़े बुजुर्गों कि हैसियत कहीं कुछ नहीं दिखती हर कोई मनमानी जिन्दगी जीना चाहता है दूर जाने कि अब कोई जरुरत नहीं हमको एक छत के नीचे रहकर भी जिन्दगी फासलों में कटना आम हो गयी है .......... रवि कवि

शहर तो मिल गया पर ...............

मैं उस दिन से दुखी हूँ जिन दिन से शहर से जुडा हूँ मैं शहर से क्या जुडा तब से नित रोज़ टूट रहा हूँ पहले अपने रुट्ठे फिर सपने टूटे जिस चमक ने चका चौंध किया क्या मालूम था कि, एक दिन ये मन की शांति हे छीन लेगी संवेदनाये मरती चली जाएँगी स्वार्थ और मजबूरी के नाम पर अनचाही घटनाये घटती रहेंगी लोग तो अब यह भी कहने लगे है कि मैं अब पहले जैसा नहीं रहा बहुत बदल गया हूँ लेकिन सच तो यह है कि मुझे खुद नहीं मालूम मेरे साथ ऐसा क्या हुआ जो धुप मैं जले चेहरे कि रंगत के साथ साथ मेरे अन्दर का इंसान भी जल गया पैसा पैसा और पैसा जरूरते तो पूरी हो गयी लेकिन गुरूर पूरा नहीं हुआ मैं ये कहाँ से कहाँ आ गया जहाँ कोई साथ नहीं है मेरे न सच्चा दोस्त, नो हमसफ़र जिसको देखता हूँ वो मुझे मेरे जैसा ही दीखता है यकीनन शहर तो मिल गया मगर सुख चैन सब हर गया है गाँव मैं था तो हर शख्स अपना भाई अपना दोस्त, बड़ा ही अपनापन था लेकिन शहर मैं पूरा जीवन खर्च करके भी एक सच्चा अपना कोई न मिला अब पूरा जीवन खपा के शहर मैं बस इतना ही मर्म समझ मैं आया है कि शहर मैं जीने वाले वो परिंदे होते है जो सुकून रुपी गाँव के घोंसले को तिनको कि झोंपडी समझ

जोड़ तोड़ जुगाड़ बस !

कभी कभी बहुत मलाल होता है शहर मैं जीना कितना मुश्किल होता है इधर रात की नींद भी पूरी नहीं होती और उधर सुबह का सूरज निकल आता है दौड़ते भागते - पेट की आपाधापी मैं मालूम ही नहीं पड़ता, और दिन गुजर जाता है कभी सोचने और समझने की फुर्सत ही नहीं मिल पाती बस अर्थ जुटाने में हे सारा वक़्त निकल जाता है कब बचपन बीता, कब जवानी से बुढापा आ गया कुछ भी याद नही रहता तीस मैं भी जीवन साठ सा नीरस बन जाता है मुश्किलें, किल्लते और जिल्लते सहते सहते आँखों का पानी और मन का सब्र सब खो जाता है सब टूट जाता है न दिल मैं फिर कोई दया बचती है न ही मानवीय संवेदना रह जाता है तो सिर्फ जोड़ - तोड़ - जुगाड़ बस ! ये ही सार शेष रहता है जीवन के अंत मैं ................. रवि कवि

भीड़ का शहर

भीड़ ही शहर है इत्तेफाको की भरमार है अपनेपन की जगह नहीं है हर चीज़ यहाँ व्यापार है जरा संभलकर रहिये हर निगाह को मौके की तलाश है आपके भ्रम सब हो जायेंगे काफूर यहाँ दगाबाजों की लम्बी कतार है न सुबह की ताजगी मिलती है न ही सुकून की शाम शोर, प्रदुषण और पेट की आपाधापी में जीवन की रौनक दिनोदिन घट हो रही है फुर्सत की बात की तो समझो गुनाह कर दिया फालतू शख्स भी यहाँ पहने रहता व्यस्ताओं का नकाब है मैं, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे, सिर्फ इतनी सिमटी सी जिन्दगी जीना ही अब शहर की पहचान है.................. रवि कवि

कुछ खुली पंक्क्तियाँ......................

( १) हर चीज़ सो़च समझ कर करना जीवन का सफ़र है अपना अगर गलती भी करो तो इस फक्र से की अंजाम देख कर सीना तना रहे सब्र से............ (२) नाव को देख कर बैठोगे तो खतरा जान को होगा और जो मांझी को देख कर बैठोगो तो खतरा दिल को होगा अब फैसला तुम्हारा है की कौन सा खतरा लेना तुम्हे प्यारा है ............... (३) मोहब्बत भी एक ताबूत से अधिक कुछ नहीं ताबूत बेशक चन्दन की लकडी का ही क्यों न हो पर दफ़न उसमे लाश ही होती है..................... (४) हम कल भी चुप थे हम आज भी चुप है और हम आगे भी चुप ही रहेंगे जरा हम तो देखे वो हमसे चुप रहने की होड़ कब तक करेंगे ................... (५) में ये कहता था की तुम मेरी हो तुम ये जताती थी की तुम किसी और की हो पर अब ये जमाना कह रहा है की हम एक दुसरे के है................ (६) यूँ तो ढहाई अक्षर भी पुरे नहीं इस प्यार शब्द में मगर जिन्दगी भी पड़ जाती है छोटी इसे गुजारने में...................... (७) घर की मोख में से झाँक कर वो मुझे देखते है रेत पर मेरा नाम बार बार लिखकर मिटो देते है मोहल्ले

मीडिया और कविता में फर्क....

लोग कुछ भी कहें कुछ भी समझें यह हक़ है उनका पर हर बार जो वो समझें सही ही हो, ऐसा नहीं होता यूँ भी अश्लीलता देखने वालों की आँखों में होती है माँ जब दूध पिलाती है तो ममता छलकती है पत्नी जब अपने पति को प्रेम करती है तो सृष्टि की सृजनता होती है प्रेम का प्रदर्शन नहीं होना चाहिए मगर एकांत में मधुर मिलन के भाव को समझना चाहिए यौवन जीवन की सच्चाई है प्रेम जीवन की सचाई है मन से मन का मिलन जितना ज़रूरी है उतना ही तनसे तन का मिलन भी ज़रूरी है अगर बिना कहे बात बनती होती तो कंडोम को इतने प्रचार की ज़रूरत कभी नहीं होती फिर भी आज की मीडिया से कहीं ज्यादा कविता में शरम है बात कहने के अंदाज़ में बड़ा फर्क है जो मीडिया रात दिन यह बताता है की कपड़े के अन्दर नंगा शरीर कैसा दिखता है वही बात एक कवि शरीर की खूबसूरती को बयान एकदम निराले अंदाज़ में करता है रही बात शब्दों में अपना भाव पिरोकर कहना हर कवि का अपना अंदाज़ होता हैं बस मन के भाव पहुँचाना ही कवि का संकल्प होता है व्यापार नहीं करता कवि न ही बिकाऊ मीडिया है कविता तो बस इतना चाहती है की समाज आगे बढ़े और शांत रहे और हर ओर खूबसूरती बिखरे बस इतना ही उसका मर्म ह

नाम है मेरा विश्वास

हौसला - खोटी उम्मीद का विकल्प हूँ मैं साँझ से जुदा होते उजियारे की आस का बन्धन हूँ मैं मोतियों से गुँथी माला को बाँध कर रखने वाला धागा हूँ मैं अतृप्त हृदयों की प्यास को बुझाने वाला अमृत हूँ मैं धरा में शान्ति के विचार उत्पन्न करने वाला दूत हूँ मैं नफ़रत को मिटा के प्रेम से सर्वस्व भरने वाली अदृश्य शक्ति हूँ मैं अंधकार से प्रकाश को मिलाने वाली अद्‌भुत कड़ी हूँ मैं ज़माने के हर दर्द को रंग से रँगीन करने वाला रंगरेज़ भी हूँ मैं कभी छिपा हुआ सत्य कभी उघडा हुआ दर्शन है मेरा मैं आज के संसार में जीवित हूँ मगर अपनी पहचान से एकदम गुमनाम सा खोया खोया, मगर हर दिल में रहता एकदम सक्रिय सा जानते हो मुझे क्या तुम नाम है मेरा विश्वास

जननी के सम्मान की खातिर

हम नारी हैं हम नारी हैं हम नारी हैं देश को आगे ले जाने की अब हमारी बारी है शक्ति की परिभाषा हैं हम धैर्य की पुजारिन है रिश्तों में गूँथने वाली माला में डोर भी हमारी है होंसलों के आगे हमारे हर चट्टान टूटी है नारी को कमज़ोर न समझो मिटटी की मूरत ना समझो अब परिवर्तन की राह पे हमको चलना है अधिकार अपने पाने को पूरी ताकत से लड़ना है जननी के सम्मान की खातिर आगे हम अब आए हैं यह मत भूलो तुम की नारी बिन पृथ्वी सूनी है माता पत्नी और बेटी के रूप में सृष्टि की जननी है हम नारी हैं हम नारी हैं हम नारी हैं देश को आगे ले कर चलने की अब हमारी बारी है

KYONKI AAJ HAI HAMRI CHUTTI KA DIN

KYONKI AAJ HAI HAMRI CHUTTI KA DIN # Aao aao khub khaye, Masti kare dhamal machaye Kyonki aaj hai hamari chutti ka din, Mummy ki na sunege Papa ki na manege Aaj toe padhenge hum bilkul nahi Kyonki aaj hai hamari chutti ka din Rani bhi aayegi Sonu bhi chalega Aur mera pyara mohan bhi rahega Sab jayenge khelne Parak mein sang Kyonki aaj hai hamari chutti ka din Kapde hamare hoe jaye gande Ladenege jhagdenge khub hum Mitti se nahayenge Pani mein lagayenge khub dumbki hum Kyonki aaj hai hamari chutti ka din Dada ko satayenge Dadi ko bhagayenge Badi didi ko hum khub rulayenge Aage piche apne sabko ko nachayenge Kisi ki bhi na itni sunege hum Kyonki aaj hai hamari chuti ka din………. ( By :RAVI KAVI)

ओ मेरी अनुगामिनी

सुख दायिनी मंगल कारिणी सुमधुर जीवन रचने वाली बनकर मेरी सहचारिणी प्रीत के पल्लव संचित करके घर आँगन मेरे आई हो ! ! रिश्तों में विश्वाश का बंधन जीवन में प्रेम का स्पंदन तुम साथ अपने लाई हो !! सृजनता, सहनशीलता, संस्कार के गहनों सा सुसज्जित रूप तुम्हारा यूं ही दमके सर्वदा !!! ओ मेरी अनुगामिनी है स्वागत के द्वार खुले तुम्हारे अभिनन्दन में तुम इसमे प्रवेश करो.........रवि कवि

सिर्फ़ और सिर्फ़ २७ दिन ही शेष है

चलो एक लंबे अरसे बाद ही सही अब वक्त आ ही गया है सिर्फ़ और सिर्फ़ २७ दिन ही शेष है हमारे परम प्रिये महेश बाबु के सामजिक कुंवारेपन से मुक्ति के जल्दी ही वोह अब एक से दो हो जायेंगे और गृहस्थ जीवन की शुरुआत करेंगे बचपन जवानी से गुजरते हुए शादी के पवित्र बंधन में बंध जायेंगे यूँ टे महेश बाबु का जीवन किसी परिचय का मोहताज़ नही पर चूँकि यह ऐसे घड़ी है जब महेश बाबु के जीवन का सबसे अहम् दौर है और सच कहा जाए टे जितना भी कहा जाए उतना ही कम होगा क्योंकि इतना महान जीवन चरित्र से प्रेरणा मिलना बड़े ही सौभाग्य का विषय है और मुझे उनके जीवन के इतने निकट आने का मौका मिला समझता हूँ की जीवन धन्य हुआ है महेश बाबु बचपन से ही नटखट परवर्ती के रहे है स्वभाव से शर्मीले मगर अद्भुत प्रतिभा के धनि है हर कला में पारंगत और अच्छे अच्छों के बोलती बाँध करने में इनका कोई सानी नही है कॉलेज के जमाने में भी इनकी खूब धूनी जमती थी हर लड़की इनके दीदार को कुछ इस तरह तरसती थी मानो सावन की पहली बारिश के लिए तपती धरती तरसती हो इनका सौंदर्य और निखार मानो किसी राजकुमार से कम न था शिक्षा हो या प्रेम दोनों विषयों में इन्होने जमकर

मुबारक हो तुमको यह शादी तुम्हारी

मुबारक हो तुमको यह शादी तुम्हारी सदा खुश रहो ये दुआ है हमारी की मुद्दत के बाद आती है ये घड़ी सुहानी जब मिलती है प्रेम दीवानी नही इतना अच्छा कोई और पल है दिलो के मिलन का ये उत्सव है नई उमंग और तरंग का ये मौसम रहे यूँ ही बना हरदम येही है हमारी सबकी दुआ मैं रहो तुम खुश इस नई जिन्दगी में वो आए लेके ऐसी खुशिया महकता रहे घर का इक इक कोना पलकों में रख्नना तुम उसका सपना येही है हमारी तुम्हारे लिए दुआ मुबारक मुबारक मुबारक मुबारक होए तुमको मुबारक यह खुशिओं का तोहफा ...........................रवि कवि

शंखनाद अब बस है होने वाला.........

बहुत हो मुबारक ये शादी का उत्सव चला है एक और दोस्त घोडी पे चड़ने प्रियंका संग राजीव और अमिता संग महेश को बधाई जो चले है सात फेरे लेने मिलन के नया ये जीवन लाये खुशियों की दौलत परिवार में फ़ले वधु का आगमन सौभाग्य आए बनके तुम्हारा भुला दे हर एक दर्द देके प्रेम का सहारा जब होने लगे मन व्यथित तो उसका देख चेहरा उड़न छु हो हर अवसाद तुम्हारा सुबह अब होगा अब कोई नींद से जगा के अपने आगोस में लेने वाला सुबह की चाय की मिठास अपने होंठो से देने वाला पुरे हक़ से सम्मान से अपना सर्वस्य तुम्हे देने वाला एक दुसरे के लिए हमेशा बने रहो और ख्याल रखो संभाल के रखो एक दुसरे की परवाह करो येही है जीवन के सबसे अनमोल छन बस समझिये प्रेम से भरी नई जिन्दगी का शंखनाद अब बस है होने वाला............... बहुत बहुत शुब्कामने मेरे दोस्तों आपको और आपकी होने वालिओं को......... दुआओं सहित .........रवि कवि

सचमुच अब हम संवेदनशील नही रहे है

जनता जीत गई और लोकतंत्र हार गया दिल्ली के दरबार में फ़िर से वोही जीत गए महगाई का झूठा रोना आतंक के नाम पे झूठा डरना जनता यह सब करती रही जब मौका आया परिवर्तन का तो फ़िर से पाला बदल गई अब लोग ख़ुद पर ही विश्वास नही करते है पढ़े लिखे सिर्फ़ बातें ही करते है वोट देना अपराध समझते है अब यह सब होता है जिसे हम लोकतंत्र कहते है क्योंकि जो नाकाम रहे देश चलाने में हमने फ़िर उनको लाकर यह सिद्ध कर दिया है यकीनन अब महगाई को सहने की हम में हिम्मत आ गई है आतंक को सहने की ताकत आ गई है पर अब महगाई बढ़ने का झूठा रोना आतंक के नाम पे झूठा रोना बंद होना चाहिए जनता ने जनता की भावनाओ को ही हरा दिया सचमुच अब हम संवेदनशील नही रहे है ये पक्का हो गया है.................................... रवि कवि

SWAGAT KARE NAV VARSH KA

SWAGAT KARE NAV VARSH KA NAV VARSH 2009 KI YEH BELA LAYE JIWAN MEIN ANMOL KHUSIYON KI SUAGAAT JIWAN BANE MADHUR APNE BANE MRIDUL RISHTON KO MILE NAYA SAMBAL KADAM BADHE MANJIL KI TARAF NIT NAYI UNCHAI MILE ISHAR KA AASHISH MILE BADO KA DULAAR BADHE CHHOTON PAR SNEH RAHEIN JIWAN KI HAR MUSKIL MEIN NAYI SOCH AUR NAYE UTTHAAN KI AUR CHALE HAAR NAHI JIWAN KA MATLAB AUR JEET BHI NAHI JIWAN KA MATLAB HAAR – JEET TO BAAZIGARI HAI MEHAZ PREM HI ISS JIWAN KA PEHLA AUR AAKHIRI MANTRA HAI JOE SAAL GAYE UNSE SABAK SEEKHNA JARURI HAI AUR PARIVARTAN USKE LIYE JARURI HAI HAMESHA HUM HI NAYE SAAL SE UMEED KARE YEH DASTUR BHI BADALNE KA WAQT HAI MATLAB NAV VARSH BHI HUMSE BAHUT UMEED RAKHTA HAI AUR UN UMEED KO PURA KARNA MERA AAPKA SABKA KARTAVYA HAI............................. NAV VARSH PAR YEHI PRANN KARE……………….. AUR SWAGAT KARE

INKO BHI BANA DE KISI EK KAAA.......

JINKI NHAI HUI ABHI TAK SHADI KEHNE KO YUN TOE WOH KUNWARE HAI MAGAR SHAN O SHAUKAT KE ANDAAZ BADE HE NIRAALE HAI HAR LADKI HOE KUNWARI YA SHADISHUDA SAB SE ISHQ FARMATE HAI BESHAQ SAB KUCH HOE EK TARFA MAGAR DIL JARUR BEHLAATE HAI HAR MAUKE PAR REHTI HAI INKI NIGAHON KO TALAASH DUNDHTE REHTE HAI YEH DIN RAAT AUR JAB KABHI NAHI HOTI PURI MURAAD TOE TOE BHAI HAI NA "APNA HAAATH JAGANNATH" AUR FIR AGLE ROZ SE SHURU HOTI EK NAYI TALAASH BUS CHAL RAHA HAI KAAM AISE HI KHUSH HAI APNE JIWAN MEIN SABHI ACHI HI BAAT HAI PAR YEH SAB KUNWAREPAN TAK HI HOE PAATA HAI SHADI KI BAAD SADAK PAR LADKI KAB GAYI KAHA GAYI KUCH BHI AHSAAS TOE KYA SAAMNE SE GUZAR JAANE PAR BHI MALUM NAHI PADTA BESHAQ GAZAB KI BALA HOE NAGINA HOE SAB DUSRON KE MUH SE JAAN PADTA HAI SUBAH SE SHAM TAK KAHA HAI ? KYA KAR RAHE HAI ? KISKE SAATH HAI ? SABKA PURA HISSAB RAKNA PADTA HAI YA KAHE PURI DAIRI HE MAIN TAIN KARNI PADTI HAI SUNDAY KO SATURDAY OFFICE KI CHUTTI MAGAR MADAM KI DUTY KARNA PADTA HAI AUR SHADI KE BA

जीने की कला

तजुर्बा ऐ जिन्दगी बहुत हो चला अभी तक पर कुछ न मिला जहाँ से चला था फिर वहीँ आ हुआ खडा ये में चल रहा था या ज़मी जो भी हो मगर पहुंचा सफ़र कहीं नहीं सुबह कहीं शुरू होकर शाम तक जिन्दगी रोज़ आती रही जाती रही कुछ वक़्त बचपन का बीता दोस्त संगी मस्ती सब के बीच कहीं गुजरता न जाने कब बड़ा हुआ इधर उधर जाऊ किधर की उधेड़बुन कहीं होता हुआ बस चुन लिया एक रास्ता कॉलेज के दिन या कहूँ बहारों के पल काश ! यह लम्हे न होते कभी भी ख़तम मगर वक़्त के साथ न चाहते हुए बदलना पड़ता है और जीने की लगन के लिए सब कुछ सहना पड़ता है इसी मोड़ पर जिसे जवानी कहा जाता है मोहब्बत से भी सामना बस हो जाता है कल की न कुछ पता होते हुए भी प्यार की कशिश में कुछ कीमती वक़्त फिसल जाता है सफलता के लिए नहीं खुद के वजूद ले लिए दर्द ऐ मोहब्बत निभाना पड़ता है वो बात अलग है बाद में बे पनाह खामियाजा भी चुकाना पड़ता है लेकिन सब ले बाबजूद यह भी जरुरी कर्म है आज की पीढी ले लिए इसलिए इस फेर में पड़ना समझ लीजिये मजबूरी होता है खेर इसके बाद की जिन्दगी में जब हकीकत से सामना होता है बड़ा मुस्किल दौर वो होता है अछी नौकरी की तड़प दिल में लिए ये न जान