हम सबका मजहब...............
क्यों पलट नहीं देते उस व्यवस्था को जो सबको बाँट देती है समझ कर कोई टुकडा, इंसान को जाती, धर्म में काट देती है हमारे खून में नहीं कोई भेदभाव तो दिलो में ये नफरते क्यों बोई जाती है क्यों कभी हिन्दू, कभी मुस्लिम बनाकर जीवन का चीरहरण होता है खुदा चाहे जन्नत में बसे या भगवन स्वर्ग में इस बात से क्या फर्क पड़ता है जरा खोल मन की आँख तो देख कि राम भी हम है और पैगम्बर भी हम तभी तो मरते को जिन्दगी हम डाक्टर बनकर देते है अज्ञान कि अँधेरे को हम शिक्षक बनकर दूर करते है विकास कि पगडंडियों को हम ही इंजिनियर बनकर चढ़ते है मुश्किल के वक़्त हम ही एक दुसरे के मददगार होते है जब हर इंसान में उस रब कि हिस्सेदारी है तो काहे को इस भेद में पड़ते है यूँ भी नौ महीने से ज्यादा कोई गर्भ में नहीं रहता साँसों का आना जाना सबका एक जैसा है हसना रोना सबमे छिपा है इसलिए इस जाती/धर्म के चक्कर में पड़ना बेहद फिजूल है हम तो सब कठपुतली है बनाने वाला तो कोई और है जिसने हमको जीने का मौका दिया है इसलिए उसके दिए मौके को प्रेम से रहकर जीना मेरा आपका सबका परम कर्त्तव्य है भेदभाव नफरत और संकीर्ण मन कभी भी उस मालिक कि सोच नहीं हो सक