शीर्षक : मतलब की नाव
शीर्षक : मतलब की नाव जीवन के इस दौर में सब पर आपाधापी छाई हैं दौड़ लगी है बेसुध - अंतहीन इच्छाओं की भरी पिटारी है न चिंता है देश समाज जनहित की बस अपनी ही सुध में पलते हैं हमदर्द, हमराह, हम ख़याल अब अकेले पड़े है तन्हाई में लूट संस्कृति का चालान जोरों पर है मर्यादा की खाल पल पल नुच रही हैं निज स्वार्थ निज लाभ बस इतना ही आंखो में समाता है सुबिधाओं का अम्बार लगाना हर कोई चाहता हैं दिल में भी नही घर में भी नही ख्यालों में भी नही अब किसी के लिए किसी के पास जगह नही मतलब की नाव पर हर कोई सवार हो रखा है और मतलब पुरा होते ही कौन है आप? किसे याद रहता है बड़ी विचित्र हवा चल रही है अब इस अंधी दुनिया में हाय पैसा ! बस पैसा ! की चल रही महामारी हैं रिश्तों की अब किसे जरुरत न ही दोस्त चाहिए अब ख़ुद का सुख ही सर्वस्व है अब इतने में सिमट रही अब दुनिया सारी हैं शान्ति समर्पण और तपस्या सब मौन पड़े है झूठ और हिंसा इस युग के नए नारे है इश्वर को भी चन्दा देकर खरीदने का ढोंग हो रहा है हर और मीनार ऊँची करने में बस लगा हुआ है आज के युग का हर प्रानी धरम सत्य और अहिंसा सब बेमानी है इस दौर में जीवन तो कठिन नही रहा