चलते रहो बस चलते रहो.......

कभी जिन्दगी
कुछ उलझनों और कुछ शरारतों
के बीच चलता हुआ कोई तूफान है
कभी जिन्दगी
धडकनों और लम्हों
के बीच दौड़ती फिरती मुस्कान है
कभी जिन्दगी
तेरी या कभी मेरी
रोज़ रोज़ बदलने वाली
पहचान है
और येही पहचान
जिन्दगी की कहानी है
जी ले इसे जैसी भी है
जिन्दगी बस चलते रहने का नाम है
चलते रहो बस चलते रहो.............................रवि कवि

Comments

कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
अच्छी रचना पोस्ट की है ........
अच्छी पंक्तिया लिखी है ........

यहाँ भी आये और अपनी बात कहे :-
क्यों बाँट रहे है ये छोटे शब्द समाज को ...?
सदा said…
सुन्‍दर शब्‍द रचना, भावमय प्रस्‍तुति ।
जिन्दगी बस चलते रहने का नाम है
चलते रहो बस चलते रहो......
...badiya prastuti...chalna hi to jindagi hai...

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