आम आदमी की येही असली पहचान है
जितना भी दीजिये
दे दीजिये दर्द
सह जायेंगे हर ग़म
क्योंकि हमको दर्द में
जीने की आदत हो गयी है
दो घूंट बस मुफ्त की शराब
या सस्ती सी साडी ही सही
या जूठी आस के कुछ झूठे वायदे
आम आदमी से कीजिये जनाब
और फिर ५ साल का लिए
ले जाइये हमसे सत्ता का अधिकार
कितना सस्ता सौदा है ये
जो हर बार बार हो जाता है
४ साल तक रुलाना
फिर पांचवे वर्ष में कुछ
झूठे आश्वासन और झूठे सपने
कुछ लोलीपोप और फिर से
नेता जी की हो जाती मौज ही मौज
गरीबी कहाँ कम हुई
बेरोजगारी कहाँ कम हुई
महगाई कहाँ कम हुई
झोपडी मकान आजतक नहीं हुई
आज भी एक मुट्ठी चावल
और पूरी हांडी में पानी भर भर कर ही
करोडो परिवार्रों का काम चल रहा है
बच्चे आज भी स्कूल नहीं जा रहे
और जो जा रहे है
वो कुछ भी नहीं पा रहे
गाँव रोजगार की आस में
पहले ही अनाथ हो चुके है
शहर झुग्गी झोपडी से भड़े जा रहे है
सुना है देश की राजधानी में
आजकल बहुत विकास हो रहा है
११ दिनों के लिए विदेशी मेहमानों को
हजारो करोड़ लगाके
खुश किया जायेगा
मेट्रो, फ़ीलाइओवेर, फूट ओवर ब्रिज , चमकती रोड
मखमली फूटपाथ, रंग बिरंगी बत्ती, महंगी बस
और भी न जाने बहुत बहुत कुछ
होने में सब तंत्र जुटा है
और यह सब देखकर
आम आदमी बहुत खुश भी है
और खुश हो भी क्यों न
आखिर प्रचंड महगाई, बढे बस के किराये
महंगी बिजली, पानी सब वो सेहन कर रहा है
वो भी जानता है
उनकी झोपडी मकान कभी नहीं बनेगी
महगाई अगले चुनाव तक बढती रहेगी
दिखावे पुरे जोर शोर से होते रहेंगे
आम आदमी को सब्र के आश्वासन जारी रहेंगे
अमीर मालामाल और गरीब बद से बदतर
की और कदम बढ़ाते रहेंगे
लेकिन हम आम आदमी
सरकार के साथ अपनी पूरी गरीबियत के साथ
पुरे तन मन से खड़े रहेंगे
आखिर अतिथि देवो भव:
हमारे देश की संस्कृति है
हमारी भूख से ज्यादा विकास जरुरी है
हम तो विदेशियों के स्वागत में
गलीचा बनकर भी बिछने को तैयार है
यूँ भी गरीब आदमी सिर्फ मजदूरी और
१०० या २०० रुपए या शराब के नाम पर
अपना वोट बेचने के अलावा
किसी और काम के लिए नहीं है
ऐसे में बेहतर होगा की हम आदमी
जब विदेशी लोग हमारी राजधानी में आये
तो हम कुछ रोज के लिए
खुद बा खुद
अपने अपने गाँव चले जाये
ताकि विदेशी भारत के विकास के ही दर्शन करे
आम गरीब आदमी के दर्शन से
उनका जायका और मूड ख़राब नहीं होना चाहिए
वैसे भी यह काम सरकार
बिना कुछ कहे कर रही है
इशारे हर तरफ ऐसा ही कुछ
गरीब करे
किया जा रहा है
जो काम आ सके किसी ख़ास के
आम आदमी की येही असली पहचान है........................ रवि कवि
दे दीजिये दर्द
सह जायेंगे हर ग़म
क्योंकि हमको दर्द में
जीने की आदत हो गयी है
दो घूंट बस मुफ्त की शराब
या सस्ती सी साडी ही सही
या जूठी आस के कुछ झूठे वायदे
आम आदमी से कीजिये जनाब
और फिर ५ साल का लिए
ले जाइये हमसे सत्ता का अधिकार
कितना सस्ता सौदा है ये
जो हर बार बार हो जाता है
४ साल तक रुलाना
फिर पांचवे वर्ष में कुछ
झूठे आश्वासन और झूठे सपने
कुछ लोलीपोप और फिर से
नेता जी की हो जाती मौज ही मौज
गरीबी कहाँ कम हुई
बेरोजगारी कहाँ कम हुई
महगाई कहाँ कम हुई
झोपडी मकान आजतक नहीं हुई
आज भी एक मुट्ठी चावल
और पूरी हांडी में पानी भर भर कर ही
करोडो परिवार्रों का काम चल रहा है
बच्चे आज भी स्कूल नहीं जा रहे
और जो जा रहे है
वो कुछ भी नहीं पा रहे
गाँव रोजगार की आस में
पहले ही अनाथ हो चुके है
शहर झुग्गी झोपडी से भड़े जा रहे है
सुना है देश की राजधानी में
आजकल बहुत विकास हो रहा है
११ दिनों के लिए विदेशी मेहमानों को
हजारो करोड़ लगाके
खुश किया जायेगा
मेट्रो, फ़ीलाइओवेर, फूट ओवर ब्रिज , चमकती रोड
मखमली फूटपाथ, रंग बिरंगी बत्ती, महंगी बस
और भी न जाने बहुत बहुत कुछ
होने में सब तंत्र जुटा है
और यह सब देखकर
आम आदमी बहुत खुश भी है
और खुश हो भी क्यों न
आखिर प्रचंड महगाई, बढे बस के किराये
महंगी बिजली, पानी सब वो सेहन कर रहा है
वो भी जानता है
उनकी झोपडी मकान कभी नहीं बनेगी
महगाई अगले चुनाव तक बढती रहेगी
दिखावे पुरे जोर शोर से होते रहेंगे
आम आदमी को सब्र के आश्वासन जारी रहेंगे
अमीर मालामाल और गरीब बद से बदतर
की और कदम बढ़ाते रहेंगे
लेकिन हम आम आदमी
सरकार के साथ अपनी पूरी गरीबियत के साथ
पुरे तन मन से खड़े रहेंगे
आखिर अतिथि देवो भव:
हमारे देश की संस्कृति है
हमारी भूख से ज्यादा विकास जरुरी है
हम तो विदेशियों के स्वागत में
गलीचा बनकर भी बिछने को तैयार है
यूँ भी गरीब आदमी सिर्फ मजदूरी और
१०० या २०० रुपए या शराब के नाम पर
अपना वोट बेचने के अलावा
किसी और काम के लिए नहीं है
ऐसे में बेहतर होगा की हम आदमी
जब विदेशी लोग हमारी राजधानी में आये
तो हम कुछ रोज के लिए
खुद बा खुद
अपने अपने गाँव चले जाये
ताकि विदेशी भारत के विकास के ही दर्शन करे
आम गरीब आदमी के दर्शन से
उनका जायका और मूड ख़राब नहीं होना चाहिए
वैसे भी यह काम सरकार
बिना कुछ कहे कर रही है
इशारे हर तरफ ऐसा ही कुछ
गरीब करे
किया जा रहा है
जो काम आ सके किसी ख़ास के
आम आदमी की येही असली पहचान है........................ रवि कवि
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