काश ऐसा ही हो

मेरा बचपन उजड़ा
है कोई जिम्मेदार
में बना दी गयी बेसहारा लाचार
किसे कहूँ कसूरवार
में भी खिलोनों से खेलना चाहती थी
पर कर दिया मुझे
खिलने से पहले ही शर्मसार
क्या कभी मेरा बचपन अब लौट पायेगा ?
खुल कर जीने का अधिकार मिल पायेगा ?
काश !!!!
ये सब मेरा कोई बुरा सपना ho
में नींद से जागूं, तो दुनिया में
हर कोई मेरा अपना हो !!!!!!!!!!!!!
काश ऐसा ही हो
काश ऐसा ही हो ....................रवि कवि

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गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...

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