लोग कहते है कि सम्मान दीजिये

लोग कहते है कि सम्मान दीजिये
हम कहते है की रहने दीजिये
क्यूंकि जो जीवन भर न मिला उसका क्या ख्वाब देखना
हां पर जो जिन्दगी भर भरपूर मिला ... अपमान
अब आदत सी हो गयी है उसके साथ जीने की
इसलिए नहीं चाहिए अब कोई दौलत सम्मान की
यूँ भी ये दुनिया तो भरी है आडम्बरों से
जहाँ कोई कायदा नहीं चलता एक तरह से
एक दुसरे को काटो और लोगो को बांटो
इसी नियम पर ये संसार चलता है
बातें मानवता की दुहाई ईमानदारी की
लेकिन असल में सौदा तो चालों और कपट से ही होता है
यहाँ कोई देता है तो इसलिए देता है
क्यूंकि बदलें में उसको आपसे कुछ और बड़ा लेना होता है
रिश्तें भी मंडी की तरह यहाँ बिकाऊ रहते है
नोटों की दौलत जहाँ
वहीँ ये भी खड़े होते है
भले मानस की यहाँ अब किसी को चाह नहीं
लोभ और तुच्छ सोच सब पर हावी है अब
ऐसे में इस संसार का कोई भी सम्मान
किसी प्रपंच से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता
और कोई प्रपंच मेरे लिए सम्मान कदापि नहीं हो सकता
इसलिए मुझे मेरी गुरुबत ही प्यारी है
कमसे कम जैसी भी है
मेरी है और किसी और में

इसे अपनाने की हिम्मत तनिक भी नहीं है ...... रवि कवि 

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