मैं विद्रोही हूँ तो .......
मैं विद्रोही हूँ
तो मुझे विद्रोही रहने दीजिये
बेहतर होगा यही
कि आप मेरी मनमर्जी मुझे करने दीजिये
मैं नहीं बना हूँ आपकी दुनिया के लिए
मुझे भाती नहीं कदापि
ये नौटंकिया दुनियादारी की
न कभी समझ में आते है
ये बेहूदा टंटे जाति बिरादरी के
लोग पीकर झूठी शराब
अगर जी रहे है मस्ती में
तो मुझे नहीं रहना ऐसी सोहबत में
नशे में अंधे समाज को
भला कोई क्या समझाएगा
मानवता को जो रोज बेचते है
अपने घटिया स्वार्थ के बाजार में
ऐसे जिंदे मुर्दों के शहर में
जीना जिदंगी कौन चाहेगा
जहाँ पर दिन घुटन से बेचैन हो
रातें काटती हो साँसों को
एक अंधी दौड़ में दौड़ने वालों के बीच
मुकाबला जहाँ चलता रहता है दिन रात
कैसे मैं कहूँ खुद से
कि ये ही जीवन है मेरे मन का
सच तो ये है
की मैं तुम्हारी तरह
कैद में घुटी साँसों का सौदा नहीं कर सकता
कुछ पाने के लिए खुद को बेच नहीं सकता
इंसानियत हो.. प्रकृति हो.. या भावनाए जीवन की
मैं कदापि इनसे खिलवाड़ नहीं कर सकता
अगर ये सब विद्रोह है तो
मेरा विद्रोह ही समझ लीजिये
कुछ न पाकर सुकून से जीना ही मुझे कुबूल है ..... रवि
कवि
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