शीर्षक : ईश्वर से कैसे बच पाओगे?

शीर्षक : ईश्वर से कैसे बच पाओगे?

मेरा अस्तित्व क्या होगा
यह अधिकार तुम्हारा नही है
मुझे जन्मने से वंचित रखना
यह कृत्य उचित नही है
मे जननी हूँ धरा की,
मेरे भ्रूण का नाश करना
यकीनन एक राक्छ्सी वृति है
कोख मिटाना नारी की
दुर्भाग्य की परिणिति है
और नारी ही जब नारी की मृत्तुदाता बन जाए
इससे घिनौना कुछ कर्म नही है
मुझे मारने वालों
कभी क्या तुमने यह सोचा है
की जिसका अस्तित्व मिटाने चले हो
उसने हे तुमको अपने खून से सींचा है
अरे झूट का पुण्य कमाने वालों
गंगा में व्यर्थ नहाने वालों
भला नही होगा
चाहे कुछ भी कर डालो
जो मारते है बेटी को अपनी
वों सिर्फ़ नरक योनी में जाते है
नीच से ज्यादा कुछ और नही हो सकते
यह कोख के हत्यारे है.........
ले डूबेगा यह पाप तुम्हे एक दिन
मोक्ष्य नही मिल पायेगा
बेटी की भ्रूण हत्या करने वालो
बेशक बच जाओ तुम दुनिया की नज़रों से
लेकिन अपनी नज़रों में कभी नही उठ पाओगे
जीवन छीन के जीने वों
ईश्वर से कैसे बच पाओगे?

(रचनाकार : रवि कवि)

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