रहबरी का सहारा


कुछ रब का अहसान रहा मुझ पर कुछ तेरी रहबरी का सहारा मिला वर्ना जख्म के समंदर में डूबकर भी भला कोई जिन्दा रहा है कभी? लोगो ने तो बहुत कुछ किया पल पल रंग बदल बदल छाया को भी न बख्शा कभी जहाँ भी जैसी भी मिला मौका करतूत कोई रहने न दी पर उसकी मेहर और तेरा सिहराना जिन्दगी की ढाल बना रहा मैं हर दर्द को हर मर्ज को छोड़ आया जहाँ भी जैसे ही वो मिलते रहे आखिर यह भी कोई गले लगाने की चीज़ होते है भला ? जब मेरा रब मेरे साथ है और में अपने यार के करीब.................. रवि कवि

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